मैं वृंदावन आया हुआ हूं और यहां प्रचंड गर्मी होते हुए भी अच्छी खासी भीड़ है। एक जगह बैठा हुआ था कुछ जानकार बंधु जन के साथ। बातचीत चलने लगी कि हमारे तीर्थ स्थलों पर वरिष्ठ जनों का क्या हाल होता है। क्या वे आराम से भगवान के दर्शन भी कर सकते हैं।
इसी क्रम में बहुत बात चलती रही और जगह-जगह पर अलग-अलग मंदिरो की चर्चाएं होती रही। एक बात समझ में आई कि हम भारतीय या यूं कहें हम सनातनी लोग इस और ज्यादा ध्यान नहीं दिए हैं।
किसी भी मंदिर में चले जाएं और वहां पर इस दृष्टि से अगर चारों तरफ नजर दौड़ाएं तो पाएंगे कि वरिष्ठ जन बहुत मुश्किल से भगवान के दर्शन करने में सफल होते है। किसी कोने में देखेंगे किसी वरिष्ठ व्यक्ति को दो-दो लोग पकड़ के, अच्छी खासी भीड़ में भी, भगवान के सामने किसी तरह लाते हैं जिससे कि वो कुछ क्षणों के लिए भगवान का दर्शन कर सके। मंदिर के अंदर पहुंचने में भी बहुत कठिनाई होती है। वैसे भी हमारे मंदिरों में इतने ज्यादा श्रद्धालु आते हैं की जवान तक को दर्शन करने में मुश्किलें आती है, तो फिर व्यस्क व्यक्तियों का तो क्या हाल होता होगा सोचिए जरा।
आज का ही एक वाक्या सुनाता हूं। एक मंदिर में एक वरिष्ठ पति पत्नी को देखा भगवान के सामने नतमस्तक करते हुए। कोई सत्तर वर्ष से ज्यादा के लग रहे थे। दर्शन कर जब लौट रहे थे तब नजर गई और देखा कि उस अधेड़ उम्र की माताजी के एक पांव में तकलीफ है और वो बिगर सहारा के चल नही सकती। उनको मंदिर में दर्शन कराने के लिए उनके पति, जो खुद काफी उम्र के लग रहे थे, उनका सहारा बने। इस मंदिर में तो केवल दो ही सीढी चढनी थी, इस कारण परेशानी नहीं हुई पर ज्यादातर जगह तो काफी सीढी होती है।
इसे एक और दृष्टिकोण से भी देखना चाहिए। हमारे यहां जब ज्यादातर लोग एक उम्र के बाद तीर्थ स्थान पर जाना अपना कर्तव्य और शायद समय के अनुसार ज्यादा जाना चाहते हैं। और यही वह समय है जब वह उतने स्वस्थ नहीं रहते हैं। ऐसे में अगर हम सही सुविधा उन्हें दें तो शायद इससे बड़ा हम उपकार उन पर नहीं कर सकते हैं। और साथ-साथ हम उनकी धार्मिक भावनाओं को भी (उजागर) कर सकेंगे।
ध्यान आ रहा है कि तिरूपति मंदिर में वरिष्ठ व्यक्तियों के लिए कुछ विशेष प्रबंध किए गए हैं। एक निश्चित स्थान तक आप वरिष्ठ जन को ले जाए और फिर मंदिर के स्वयंसेवक उनको दर्शन करवा देते है। हो सकता है कुछ और मंदिर में भी व्यस्क व्यक्तियो के लिए विशेष प्रबंध किए गए हो।
चलिए जरा विचार करें की इस समस्या का समाधान तो हमें ही ढूंढना होगा ना। इन बिंदुओं पर नजर करें
- श्रद्धालुओं की इतनी भीड़ को देखते हुए क्या हम एक निश्चित समय केवल वरिष्ठ जनों के लिए उपलब्ध करा सकते है क्या? हो सकता है दिन के 18 घंटे में कोई दो घंटा का समय केवल वरिष्ठ जन के लिए ही हो। इसमें एक दिक्कत आएगी कि ज्यादातर वरिष्ठ जन किसी छोटे उम्र के व्यक्ति के साथ ही आते हैं, क्योंकि वह अकेले चल फिर नहीं सकते। लेकिन यह तो मामूली बात है और इसका समाधान भी निकल ही आएगा।
- अपने को मंदिर में भगवान के दर्शन जहां से करते हैं, वहां तक वरिष्ठ जन को पहुंचने के लिए सुगम मार्ग बनाना होगा। ऐसा मार्ग बनाना होगा कि व्हीलचेयर वाले भी मंदिर में भगवान के सामने पहुंच सके।सीढ़ीओ के बगल में एक स्लोप भी बनाना चाहिए जिससे कि व्हीलचेयर आराम से ऊपर जा सके।
एक और पहलू पर भी यहां ध्यान देना आवश्यक है। हमारे संस्कार हमें सिखाते है कि बड़ो को सम्मान देना हमारा दायित्व है। उन्हें हर प्रकार से सहयोग देना हमारा कर्तव्य है। इसी क्रम में कभी किसी भी मंदिर में हम अगर कोई वरिष्ठ नागरिक को देखे तो आगे बढ़कर उनका सहयोग करना चाहिए। और तो और केवल उनसे अगर कुछ पल बात ही करले तो वो बहुत प्रसन्न हो जाएंगे। मंदिर में भगवान तो आपके इस सेवा कार्य को देख ही रहे हैं, ये वरिष्ठ व्यक्ति भी आपको जी भर आशीर्वाद देंगे।
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लेखक
Vijay Maroo is a volunteer with EKAL, Vidya Bharati, and Param Shakti Peeth. He has launched https://neversayretired.in – a resource for Senior Citizens towards Nation Building. He is also the brain behind http://BharatMahan.in – a portal for positive news. You can follow him on Twitter.
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