आज का समय मानव जीवन में एक अनोखा परिवर्तन लेकर आया है — औसत जीवन प्रत्याशा लगातार बढ़ती जा रही है। लोग पहले की तुलना में कहीं अधिक उम्र तक जी रहे हैं। लेकिन इसके साथ ही एक चिंताजनक बात यह भी है कि बीमार लोगों की संख्या भी तेज़ी से बढ़ रही है।
कुछ दशक पहले तक किसी परिवार में यदि कोई व्यक्ति 65 वर्ष की उम्र पार कर मृत्यु को प्राप्त होता था तो कहा जाता था — “अच्छी उम्र पाई।” लेकिन आज 75-80 वर्ष की उम्र में भी लोग सक्रिय और चलते-फिरते नजर आते हैं — बशर्ते वे किसी गंभीर बीमारी के शिकार न हुए हों।
अगर हम आंकड़ों की बात करें तो भारत में 1980 के दशक में औसत जीवन प्रत्याशा करीब 54-55 वर्ष थी। वर्ष 2000 तक यह बढ़कर 63 वर्ष हुई और आज यह करीब 71 वर्ष है। विश्व स्तर पर भी यह औसत बढ़ा है। चिकित्सा विज्ञान की प्रगति, स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता और बेहतर जीवनशैली ने इसमें योगदान दिया है।
लेकिन सवाल यह है कि क्या हम इन बढ़ते वर्षों में सेहतमंद जीवन भी जोड़ पा रहे हैं या बस बीमारियों से ग्रस्त लाचार जीवन बढ़ा रहे हैं? दुर्भाग्यवश, अधिकतर के लिए उत्तर सकारात्मक नहीं है।
आज हम देखते हैं कि युवा भी गंभीर बीमारियों से पीड़ित हैं — मधुमेह, उच्च रक्तचाप, मोटापा, चिंता, अवसाद — ऐसी बीमारियाँ जो पहले अधेड़ उम्र वालों में होती थीं, अब 20-30 की उम्र में ही दिख रही हैं। अनियमित खानपान, व्यायाम की कमी, तनावपूर्ण जीवनशैली, और प्रदूषण ने इस स्थिति को और भयावह बना दिया है।
हाल ही में मुझे दो संतों से संवाद करने का अवसर मिला। दोनों ने हमारे शास्त्रों का उल्लेख करते हुए कहा कि मनुष्य को 100 वर्ष तक जीने की कामना करनी चाहिए, लेकिन उसके लिए संयमित, अनुशासित और संतुलित जीवन जरूरी है। जीवन की लंबाई तभी सार्थक है जब उसमें स्वास्थ्य, संतुलन और उद्देश्य बना रहे।
वरिष्ठजनों के लिए अनुशासित जीवन अपनाने में भले ही कुछ देर हो चुकी हो, फिर भी जो कुछ भी बेहतर किया जा सकता है, उसे करना चाहिए ताकि जीवन का अंतिम पड़ाव भी सुखद और संतोषजनक हो।
युवाओं के लिए यह सीख और भी जरूरी है। अच्छा स्वास्थ्य बचपन और युवावस्था में डाली गई आदतों पर निर्भर करता है। जिस प्रकार धन पर ब्याज मिलता है, उसी तरह स्वास्थ्य में भी अच्छे कर्मों का चक्रवृद्धि लाभ है। अनुशासित जीवन शैली घरों में अपनाना चाहिए और स्कूलों में इसकी शिक्षा आरंभ करनी चाहिए। तभी बचपन से ही अच्छे स्वास्थ्य के बीज बोए जा सकते हैं। एक स्वस्थ व्यक्ति न केवल स्वयं के लिए, बल्कि परिवार, समाज और देश के लिए भी वरदान होता है। स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ विचार और ऊर्जा का वास होता है, जो समाज की प्रगति का आधार बनते हैं। इसलिए स्वास्थ्य को केवल व्यक्तिगत जिम्मेदारी न मानें, इसे सामाजिक कर्तव्य की तरह अपनाना होगा।
दीर्घायु होना तो वरदान है, लेकिन स्वस्थ दीर्घायु होना उससे भी बड़ा आशीर्वाद है।
एक व्यक्तिगत विचार
जब मैं स्वयं अपने जीवन की ओर देखता हूं — उस उम्र में पहुँचकर जिसे कभी ‘बुढ़ापा’ कहा जाता था — तो महसूस करता हूं कि जीवन की असली संपत्ति स्वास्थ्य ही है। जीवन कितने वर्ष का होगा, यह ईश्वर के हाथ में है, लेकिन कैसे जियेंगे, यह हमारे हाथ में है।
दोस्तों, परिचितों, परिवारजनों को देखकर यह अंतर और भी स्पष्ट हो जाता है — कोई 80 की उम्र में भी प्रसन्न और सक्रिय है तो कोई 60 में ही बीमारियों से जूझ रहा है।
इसलिए मैं स्वयं को और आप सभी को यह स्मरण कराना चाहता हूं कि — बीमारी आने का इंतजार मत कीजिए, आज से ही स्वास्थ्य को अपना पहला लक्ष्य बनाइए। उम्र चाहे जो भी हो, अभी से शरीर, मन और आत्मा की देखभाल आरंभ करें। ऐसे संबंध बनाइए जो आपको सकारात्मक ऊर्जा दें, ऐसी दिनचर्या अपनाइए जो आपको स्वस्थ बनाए, और ऐसा दृष्टिकोण रखिए जो जीवन को आनंदमय बनाए।
आइए, हम केवल लंबा जीवन नहीं, बल्कि अर्थपूर्ण, गरिमामय और आनंदपूर्ण जीवन जीने का संकल्प लें — अंत तक।
लेखक

लेखक नेवर से रिटायर्ड मिशन के प्रणेता है। इस ध्येय के बाबत वो इस वेबसाइट का भी संचालन करते है और उनके फेसबुक ग्रुप नेवर से रिटायर्ड फोरम के आज कोई सोलह सौ सदस्य बन चुके है।