याद आते है वो बचपन के दिन जब हम स्कूल में पढ़ते थे और एग्जाम के समय रोज पेपर देने के पहले घर पर बने पूजा स्थल पर जाकर भगवान से आशीर्वाद लेते थे और उनसे निवेदन करते थे कि हमें अच्छे नम्बर से उत्तीर्ण कर दे। रोजदिन तो भगवान के सामने माथा टेकने किसी त्योहार पर ही जाते थे, वो भी बड़े-बुजुर्ग की आज्ञानुसार। पर एग्जाम के समय कोई कहे या न कहे हम अपने आप भगवान के समक्ष चले जाते थे।
थोड़े बड़े हुए तो हम एग्जाम में सफलता के साथ साथ अपनी और इच्छाओं के लिए भी भगवान से प्रार्थना करने लगे। उन दिनो आवश्यकताएं बहुत सीमित होती थी जैसे नया स्कूल बैग, एक नए पेन, एक नई ड्रेस आदि। अगर ज्यादा ही विचार करने लगे तो बहुत हिम्मत कर साइकिल की मांग कर देते थे। पिताजी से मांगने के पहले भगवान से प्रार्थना करते थे कि वो पिताजी से हां बुलवा दे। जब इनमे से कुछ भी मिल जाता तो स्कूल में मित्रगण को बताते बताते थकते नहीं थे।
उम्र बढ़ती गई। हम नौजवान हो गए। कॉलेज में दाखिले के लिए और फिर अच्छी नौकरी के लिए मंदिर में भगवान से आशीर्वाद लेने पहुंचने लगे। एक बार थोड़ा-बहुत सेटल हो गए तो माता-पिता विवाह के लिए उचित जीवन साथी को ढूंढने में लग गए। उन दिनो ज्यादातर विवाह ऐरेन्ज्ड ही होते थे। लव मैरिज तो बहुत कम होते थे और जिनकी होती थी उनकी चर्चा बहुत होती थी। यथायोग्य जीवनसाथी के चयन करने में परिवार का योगदान ज्यादा रहता था। दूर रह रहे रिश्तेदार से भी संपर्क कर सुझाव आमंत्रित किए जाते थे। इन सब कोशिशो के साथ घर के बड़े-बुजूर्ग भगवान के द्वार जरूर खटखटाते थे।
विवाह के बाद खुद की जिन्दगी बढ़ने लगी। बच्चे हुए, उन्हें बड़ा करने में और जीविकोपार्जन करने में लग गए। साथ-साथ भगवान की प्रतिदिन पूजा करने में कोई कमी नहीं किए। इसका एक मुख्य कारण यह भी था कि हमारे आचरण को बच्चे जैसा देखेंगे वैसे ही वह ग्रहण करेंगे। यहीं तो संस्कार देने के तरीके हैं। सभी त्यौहार पर बच्चो के साथ घर पर और मंदिर जाकर भगवान के समक्ष आरती करना बहुत आनंददायक होता था। परिवार के साथ तीर्थस्थलों पर जाना भी खूब होता था। उन दिनो आज जैसी सुविधाएं न होते हुए भी हम किसी प्रकार की तकलीफ महसूस नहीं करते थे।
आज वृंदावन या अन्य किसी तीर्थस्थल पर इतनी भीड़ होने लगी है कि बराबर यह डर लगा रहता है कि कोई अनहोनी न हो जाए। ऐसे समाचार भी मिल जाते हैं कि कुछ व्यक्ति भगवान के दर्शन करने गए थे पर दुर्भाग्यवश, अधिक भीड़ के कारण, भगवान को प्यारे हो गए। इस भीड़ में बुजुर्ग व्यक्तियों को बहुत सावधानीपूर्वक मंदिरों में दर्शन करने जाना चाहिए।
बुजुर्ग होने पर हम शायद ज्यादा धन अर्जित करने की मांग तो ऊपर वाले से नहीं करते होंगे। हां, हमारे बच्चे खुश रहे, उनकी दिनोंदिन तरक्की हो, परिवार में सभी का स्वास्थ्य ठीक रहे, इसकी कामना जरूर करते होंगे। अपने लिए तो यहीं चाहेंगे कि हम स्वस्थ रहें और जीवन के अन्तिम दिनो में ज्यादा तकलीफ न खुद पाए और न ही परिवार वाले हमारे बिगड़े स्वास्थ्य के कारण तकलीफ पाए।
मन में कभी कभी यह विचार आ जाता है कि हम कितने स्वार्थी है। हर आयु में भगवान से कुछ मांगने के लिए ही उनके दर्शन को जाते है। बचपन में, जवानी में कुछ और मांग रहती थी हमारी और आज कुछ और। हमारा भगवान पर विश्वास और श्रद्धा ही हमें अपनी मांग रखने की हिम्मत देता है।
अभी सुबह रेडियो पर विविध भारती के प्रसारण सुन रहा था। इस चैनल पर पुराने गाने के साथ बहुत ज्ञानवर्धक बाते भी बताई जाती है। एक कहानी बताई गई कि भगवान से हम क्या मांगते है। एक शिष्य और एक गुरु भगवान के समक्ष प्रार्थना कर रहे होते है। शिष्य गुरु से पूछता है कि हम तो जब भी भगवान के सामने होते है कुछ न कुछ मांगते है, आपने क्या मांगा। गुरु का जवाब था कि भगवान से क्या मांगना। वो तो अंतर्यामी हैं, उन्हें पता होता है कि हमारी क्या आवश्यकता हैं और वो यह जानते है कि उसकी पूर्ति कब और कैसे करनी है। बस हमें हमारे भगवान पर अटूट विश्वास और श्रद्धा रखनी है।
लेखक
लेखक नेवर से रिटायर्ड मिशन के प्रणेता है। इस ध्येय के बाबत वो इस वेबसाइट का भी संचालन करते है और उनके फेसबुक ग्रुप नेवर से रिटायर्ड फोरम के आज कोई सोलह सौ सदस्य बन चुके है।
एक निवेदन हमउम्र लोगो से जुड़ने का
सभी पाठको से निवेदन है कि आप हमारे फेसबुक ग्रुप "नेवर से रिटायर्ड फोरम" से जुड़े। वहाँ आपको और मित्रो के पोस्ट पढ़ने को मिलेंगे। आप भी अपने विचार सभी से साझा कर सकते है। खास बात यह है कि इस ग्रुप में सभी पोस्ट हमउम्र के लिए विशेष होते है। आप इस लिंक पर क्लिक कर आसानी से जुड़ सकते है, या इस लिंक को (https://www.facebook.com/groups/972813436666682) टाइप करे अपने मोबाइल/ लैपटॉप पर या सीधे फेसबुक पर सर्च करे।