जैसे-जैसे हम जीवन में आगे बढ़ते हैं, प्रत्येक चरण हमें अपने आस-पास की दुनिया में योगदान करने का एक नया अवसर प्रदान करता है। सेवानिवृत्ति को अक्सर आराम करने कराने के रूप में ही देखा जाता है, लेकिन कई बुजुर्गों के लिए, यह सबसे सार्थक चरण हो सकता है – एक ऐसा समय जब वे गहन और स्थायी तरीके से अपने ज्ञान एवं अनुभव के आधार पर बहुत कुछ देश-समाज को दे सकते हैं। हमारे बुजुर्गों द्वारा किया जाने वाला सबसे बड़ा योगदान वंचित बच्चों को शिक्षित करना हो सकता है।
अनुभव की उपयोगिता
सेवानिवृत्त लोगों और वरिष्ठ नागरिकों के पास जीवन के अनुभव, ज्ञान और भावनात्मक बुद्धिमत्ता का खजाना होता है जो किसी भी पाठ्यपुस्तक से हमें प्राप्त नहीं हो सकता है। अपने जीवन के उतार-चढ़ाव को देखने के बाद, ये बुजुर्ग समाज के बच्चों को न केवल नियमित औपचारिक शिक्षा के विषय बल्कि मूल्य आधारित शिक्षा व संस्कार सिखाने के लिए अद्वितीय स्थिति में हैं – ऐसी कुछ बातें जिसकी आज हमारे समाज को सख्त जरूरत है।
हम ऐसे समय में जी रहे हैं, जहाँ यातायात उल्लंघन बहुत आम बात है, इन्सान को गुस्सा जल्दी आ जाता है, हिंसा बहुत बढ़ गई है और समाज में तलाक के किस्से काफी दिखने लग गये हैं। ये सिर्फ़ सामाजिक पतन के संकेत नहीं हैं; ये धैर्य, सहानुभूति, जिम्मेदारी और दूसरों के प्रति सम्मान जैसे मूलभूत मूल्यों की कमी के लक्षण हैं। जीवन के इन सबक को अनुभवी और सेवानिवृत बुजुर्गो से बेहतर कौन दे सकता है, जो पीढ़ियों से बदलाव के दौर से गुजरे हैं और इन मूल्यों के महत्व को समझते हैं?
राष्ट्र निर्माण में बुजुर्गों की भूमिका
बुजुर्ग, बच्चों में राष्ट्रवाद और देश सेवा की भावना भी पैदा कर सकते हैं, क्योंकि उन्होंने हमारे राष्ट्र के निर्माण के लिए किए गए बलिदानों को देखा है और वो जानते हैं कि इन अमूल्य आदर्शों को बनाए रखना कितना आवश्यक है। बच्चों को कड़ी मेहनत, ईमानदारी और नागरिक ज़िम्मेदारी के मूल्य के विषय में सिखाकर, वे भविष्य के नागरिकों को आकार दे सकते हैं। अपने अनुभवों को साझा करके वरिष्ठ जन समाज में सकारात्मक योगदान देंगे।
एक ऐसा मिशन जो देने वाले और पाने वाले दोनों को संतुष्ट करता है
वंचित बच्चों को शिक्षित करना और जीवन के उचित मूल्यो को ध्यान कराना सिर्फ छात्रों के लिए ही फायदेमंद नहीं है; यह बुजुर्गों के लिए भी बहुत संतुष्टिदायक है। इससे उनके जीवन को नया उद्देश्य मिलता है, अकेलेपन से निकलने में मदद मिलती है और उनके दिमाग सक्रिय और व्यस्त रहते हैं। इस तरह की मेंटरशिप से ऐसे बंधन बनते हैं जो पीढ़ियों और सामाजिक विभाजनों को पार करते हैं।
कैसे शुरू करें
बुजुर्ग विभिन्न तरीकों से इस अभियान में जुड़ सकते हैं – स्थानीय स्कूलों या गैर सरकारी संगठनों में स्वयंसेवा करके, छोटे सामुदायिक शिक्षण केंद्र स्थापित करके, या यहां तक कि घर पर मुफ़्त ट्यूशन देकर। इस कार्य के लिए किसी औपचारिक शिक्षण डिग्री, जैसे कि बी.एड. की आवश्यकता नहीं है; बस सेवा करने के लिए अपने आप को तैयार करना है। ऐसे बहुत से उद्हारण आपको समाज में मिल जाएंगे। कई शहरो में झुग्गी-झोपड़ी में जाकर युवाओं को भी देखा गया हैं जो कि पढ़ाई के अलावा कोशल विकास कराने में वंचितो की सहायता करते है। इससे उनका जिविकापार्जन के लिए नए नए अवसर मिल जाते हैं। इसी तरह वरिष्ठजन भी यह काम बखूबी कर सकते है।
निष्कर्ष
हमारे बुजुर्ग ज्ञान, करुणा और अंतर्दृष्टि का एक अप्रतिम खजाना हैं। यदि उनमें से एक अंश भी वंचित बच्चों को शिक्षित करने के लिए अपना समय समर्पित करने का फैसला करते है, तो यह एक शांत क्रांति को जन्म दे सकता है – एक ऐसा समाज जो एक दयालु, अधिक अनुशासित और मूल्य-संचालित समाज का निर्माण करता है।
आइए हम इस महान मिशन के लिए प्रेरित हों, समाज व परिवार को प्रोत्साहित करें और उसका समर्थन करें। आखिरकार, बेहतर कल का निर्माण करने का सबसे अच्छा तरीका आज के बच्चों में अपने अनुभवो का निवेश करना है – और इस प्रयास का नेतृत्व करने के लिए उनसे बेहतर कौन हो सकता है जो पहले से ही जीवन की राह पर चल कर इस मंजील तक पहूंचे हैं।
लेखक

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