Swami Girishanand Saraswatiji Maharaj

जय श्री राम विजय मारू जी। आपका यह प्रयास वरिष्ठ नागरिको की ऊर्जा का सदुपयोग अत्यंत प्रशंसनीय हैं और शास्त्रीय हैं। हमारे सनातन धर्म में ब्रह्मचर्य, ग्रहस्त, वानप्रस्थ और सन्यास चार आश्रमो की व्यवस्था हैं। भगवान के आदेश के अनुसार 50 वर्ष के बाद ही व्यक्ति को समाज सेवा और साधना में लग जाना चाहिए। ठीक है, फिर भी गोवर्नमेंट के अनुसार लोग 60 वर्ष में रिटायर होते हैं। लेकिन आज के समय में अधिकांश लोग उसके बाद भी स्वस्थ एवं कार्य करने लायक होते हैं। उनकी ऊर्जा का सदुपयोग कर्म की दृष्टि से सेवा में हो, मन की द्रष्टी से भक्ति में हो और बुद्धि की दृष्टि से सत्य के साक्षात्कार के लिए हो। इन तीनों कार्य का विधान हमारे शास्त्र में है और वही कार्य आप करवा रहे हैं। अगर वेदांत चिंतन समझ में नहीं आता है तो भगवान की भक्ति करें और भक्ति में भी मन नहीं लगता है तो निस्वार्थ भाव से समाज की, देश की, राष्ट्र की सेवा करें। यही क्रम है ईश्वर की अनुभूति का। निस्वार्थ सेवा ही साधना होती है, ऐसा हमारे पू्ज्य रोटी राम बाबा कहते थे। तो जो लोग 60 वर्ष के बाद भी अपनी उर्जा को राष्ट्र सेवा के लिए, समाज सेवा के लिए अगर निस्वार्थ भाव से उपयोग करते हैं तो उनको ईश्वर की अनुभूति के लिए अलग से साधना की भी आवश्यकता नहीं है। उनके निस्वार्थ सेवा ही साधना बन जाएगी। सेवा में दो बातों का ध्यान रखना आवश्यक है। जैसा कि हनुमान जी के जीवन से हम लोग सीखते हैं। सेवा कार्य हमको अगर मिला है, शरीर स्वस्थ है, अभिमान न करें कि हम ही सेवा कर रहे हैं। ईश्वर हमसे करवा रहा है यह सोच रखें और जहां भी सेवा में बाधा पड़े वहां चिंता ना कर के चिंतन करें। यह हनुमान जी के जीवन से हमको सीखने को मिलता है। इसीलिए वह सेवा कार्य में हमेशा सफल रहते थे। आपका कार्य अत्यंत प्रशंसनीय है। बहुत-बहुत आशीर्वाद, साधुवाद। जय श्री राम। जय मां नर्मदे।
Swami -Girishanandji Maharaj

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