अक्सर हाथ पकड़कर सहारा देने वाली ढलती उम्र में बच्चे कभी अंगुली पकड़कर चलना सिखाने वाले मां-बाप को ही बोझ समझने लगते है। जबकि वास्तविकता यह है कि भले शरीर से मां-बाप बूढ़े हो चुके हो किन्तु अनुभवों की सीख में तो मां-बाप साठ के पार भी मालामाल होते हैं।
दांत में दर्द होने पर फटाक से हींग या लौंग का तेल लगा देना या पेट में गैस बनने पर नाभि में हींग लगाने के नुस्खे दादी-नानी से ही विरासत में मिलते रहे हैं। प्रतिदिन बनने वाले भोजन में कौन-सी चीज गर्मियों में शरीर को ठंडा रखने के लिए,लू से बचने के लिए जरूरी है? कौन-सी सर्दियों के मौसम में फायदेमंद है? क्या बरसात में खाना ठीक होगा? और… क्या नहीं? यह सब बुजुर्गों की ऐसी अनमोल धरोहर है जिसे पीढ़ी-दर-पीढ़ी हम सब में से जो कोई भी आजमाते आ रहे हैं, वे छोटी-मोटी हार-बीमारी से तो इन अचूक नुस्खों से ही डाक्टर के पास जाने और मंहगी डाक्टरी फीस देने से बच जाते हैं। क्या मैं ग़लत हूं?
यह सही है कि देश की बढ़ती आबादी के चलते बढ़ती मंहगाई और छोटे होते घर नहीं वन या टू रूम फ्लैट में संयुक्त परिवार को जोड़कर रखना थोड़ा मुश्किल होता है। किन्तु जब साठ के पार वाले ये बुजुर्ग हमारे घर के अवैतनिक चौकीदार, बच्चों के विश्वासनीय दोस्त-सलाहकार, अपने अचूक घरेलू नुस्खे आजमाकर घरभर को निरोग रखने में मददगार, आर्थिक बजट भी कंट्रोल करवाते हो। ऐसे में संयुक्त परिवार को संजोए रखना घाटे का सौदा नहीं है, है न!
थोड़ा प्रयास करके तो देखें। सचमुच आपकी थोड़ी-सी पारिवारिक स्वतंत्रता के ऊपर घर के बड़े- बुजुर्गो का आशीर्वाद और जिम्मेदारी भरा हाथ घर से तनाव-अशांति कोसों दूर कर देंगे।
इतना ही नहीं अनेक बार घर-बाहर के तनाव से उत्पन्न पति-पत्नी के बीच होने वाले लड़ाई- झगड़ों को रोकने में भी अहम भूमिका निभाते हैं और वर्तमान समय में लगातार बढ़ रही तलाक और घर टूटने की घटनाओं में भी कमी आएगी क्योंकि घर में बड़े -बुजुर्गो के कारण ऐसे छोटे-छोटे लड़ाई-झगड़े महज चुहलबाज़ी में बदल जाते हैं, ज्यादा गम्भीर नहीं हो पाते और मामला कोर्ट-कचहरी,तलाक या घर टूटने तक नहीं पहुंच पाता।
इसलिए बेहतर है कि एकल परिवार की महज थोड़ी-सी आपसी स्वतंत्रता की बजाय संयुक्त परिवार में बड़े-बुजुर्गो की छत्रछाया में ही रहना ही अच्छा है, है न!
लेखक परिचय
सुनीता राजेश्वर, अध्यक्ष, परिणय
संस्था ‘परिणय’ के मूलमंत्र “जाति तोड़ो-भारत जोड़ो” द्वारा समाज में सामाजिक समरसता क़ायम करने के लिए प्रयासरत,पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता।
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Bhot khub….par mere khayal me wahi par bare buddohn ko respect milta h ..jaha unhe bachpan se hi samman karne ki sikska di gyi ho …. otherwise ek age bit Jane k bad hi unhe apni galati ka ehesas hota h….tab tak bhot der ho chuki hoti h….yahi bat h ki .. India me old age homes k number badhte hi ja rhe h…
बहुत से कारण है बुजुर्गो के साथ रहने के। दादी नानी की कहानियों से बच्चो का चरित्र निर्माण होता है।जब इनको सम्मान मिलता है तो बच्चो के भी मन में अपने बुजुर्गो के प्रति सम्मान पैदा होता है।यह बुजुर्ग बच्चो को टीवी संस्कृति से दूरी बनाए रखने में सहायक होते है।