आत्मनिर्भरता ही वृद्धावस्था की खुशहाली है

आत्मनिर्भरता ही वृद्धावस्था की खुशहाली है

एक निश्चित उम्र आते ही हमारे शरीर में सिथिलता और असमर्थता आ जाती है और हम स्वयं खुद के रोजमर्रा के कार्यो को करने में भी अपने आप को असहज पाते है। हम आश्रित हो जाते है एक सपोर्ट सिस्टम पर जिसे हम परिवार या समाज कहते हैं। आज के परिदृष्य में इस तरह का परिवार या सामाजिक वातावरण जो हमें सहयोग दे सके, यह सभी को नसीब नहीं होता हैं।

परिवार की बात करे तो आज यह भी विचारणीय विषय हो गया है कि एक या दो बच्चों के बीच हमारा परिवार कितना सीमित और सिकुड़ गया है। और फिर आवश्यकता जब हमें होगी उस समय उनसे कितना सहयोग मिलेगा यह कोई नहीं जानता। परिस्थितियों को देखते हुए समाज से सहयोग की आशा करना अपने आप में एक चुनौती ही है।

निश्चित ही हर पल हमारी आयु बढ़ती जा रही है। इसे कोई रोक भी नही सकता। हां, अगर हम कुछ कर सकते हैं तो वह यह है कि हम समय पर अपने सरीर के प्रति सचेत रहें। बुढ़ापा आने पर यह विचार करना कि हमें जवानी में यह करना या वह करना चाहिए था कोई मायने नहीं रखता। जो बीत गई वो बात गई।

हम वृद्धावस्था में किसी पर बोझ न बने इसके लिए हमें शारिरीक व मानसिक रूप से अपने आप को स्वस्थ रखना होगा और आर्थिक रूप से स्वतंत्र होना होगा। एक बार पुनः वहीं बात आती है कि हम बुजुर्गो को इस आयु में क्या करने की आवश्यकता है और समय रहते आज के युवा क्या करे अपने वृद्धावस्था को सही रखने के लिए। इस कारण दोनों परिस्थिति पर विचार करे तो सही रहेगा।

बुजुर्गो को अपने शारिरीक स्वास्थ्य की देखभाल करने हेतु नियमित व्यायाम, पैदल चलना, खुले साफ वातावरण में रहना, सकारात्मक विचार रखना, बेकार की बहस में न पड़ना आदि कई साधन है जिनमे वो अपने आप को ब्यस्त रख सकते है। आजकल तो हर किसी पार्क में छोटे छोटे ग्रुप्स दिखाई पड़ जाते है जहां केवल बुजुर्ग व्यक्ति कुछ एक्टिविटी कर रहे होते हैं। प्रोफेसनल्स या ग्रुप में से ही कोई लीड ले कर बहुत सुचारु रूप से व्यायाम, डांस व अन्य कई तरह की गतिविधियां कराते दिखते हैं। हम में से कई यह सब देख कर भी इन एक्टिविटीज में जुड़ने से झिझकते है। अपने को स्वस्थ रखने के लिए हमें इस झिझक से बाहर निकलना होगा।

मानसिक स्वास्थ्य ठीक रहे इसके लिए बहुत से खेल उपलब्ध है। अखबारो में सुडूकू, वर्ड पावर जैसे अनेक टाईम पास सामग्री रोज मिल जाती हैं। हम एक रुटीन बना ले कि एक-आध घंटे इन गतिविधियों में प्रतिदिन व्यतित करेंगे। चेस खेलना या ताश खेलना, बैडमिंटन या टेबल टेनिस खेलना, वगैरह सभी में मानसिक व्यायाम होता है और सोचने समझने की शक्ति बढ़ती है। जो व्यक्ति ड्राइविंग करते हैं वो जब तक हो सके इस गतिविधि को बंद न करे। हमारी सड़को पर ड्राइविंग करना कोई आसान नहीं है और इससे अच्छा मानसिक व्यायाम भी हो जाता है।

अब थोड़ी बात करे आर्थिक स्वतंत्रता की। यह बहुत आवश्यक है, पर आसान भी नहीं। ज्यादातर लोग इस उम्र में पैसो के अभाव में ही रहते है। फिजूलखर्ची तो बुजुर्ग कम ही करते होंगे पर आय का स्त्रोत न होने के कारण अपनी रोज की जरूरी आवश्यकताओं तक को पूरी करने में कठिनाई होती है। इस परेशानी से वही गिने चुने लोग बचते हैं जिन्होंने अपनी जवानी में खर्च सोच समझकर किए हो, सही इन्वेस्टमेंट और बचत की हो या किस्मत से ऐसे परिवार में हैं जहां पर बच्चे उनका पूरा सहयोग देते हैं और वो बच्चे खुद अच्छी कमाई कर रहे हों। आज की परिस्थिति में तो यही विचार करना होगा कि जो हमारे पास है उससे सुचारु रूप से हम अपना जीवन कैसे चला सकते है। इस विषय पर हम किसी विश्वासी वित्तीय सलाहकार से सहयोग ले सकते है। दो वर्ष पहले हमने ‘नेवर से रिटायर्ड’ के बैनर तले एक बहुत ही सफल वित्तीय साक्षरता या कहें फाइनैंसियल लिटरेसी पर ऑनलाइन कोर्स किया था, विशेष रूप से वरिष्ठ जन को ध्यान में रखकर। यह यूट्यूब पर भी उपलब्ध है। समय निकाल कर इसे जरूर देखें।

आज के युवा को यह समझना जरूरी हैं कि वो भी कभी रिटायर होंगे, वो भी बूढापे की ओर बढ़ेंगे, और फिर उन्हें भी इन्ही सब परिस्थितियों का सामना करना होगा। इस कारण युवा वर्ग को सही समय पर सही इन्वेस्टमेंट, समुचित बचत और मन लगाकर खूब काम करने की आदत बनानी चाहिए। इन सब बातों से ज्यादा जरूरी है कि आज युवा को अपनी सेहत का भी विशेष ध्यान रखना होगा। जैसे जैसे उम्र बढ़ती जाएगी शारीरिक क्षमता कम होती चली जाती है। बिमारी अंदर अंदर अपनी नीव बनाने लगती है। जरा सोचे, आज अगर हमें कोई बिमारी होती है तो उसका बीजारोपण तो काफी पहले ही हुआ होगा। हम युवावस्था में ही अपने स्वास्थ के प्रति सचेत हो जाए, खानपान पर विशेष ध्यान रखें और व्यायाम आदि नियमित करते रहें तब निश्चित तौर पर हमारी वृद्थावस्था खुशहाल रहेगी।

सभी को आत्मनिर्भर बनने की कोशिश करनी है जिससे कि हम बुढ़ापे में भी किसी पर बोझ नहीं बने।

लेखक

विजय मारू
विजय मारू

लेखक नेवर से रिटायर्ड मिशन के प्रणेता है। इस ध्येय के बाबत वो इस वेबसाइट का भी संचालन करते है और उनके फेसबुक ग्रुप नेवर से रिटायर्ड फोरम के आज कोई सोलह सौ सदस्य बन चुके है।

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