अनुभव की जीवित पुस्तकें हैं बुजुर्ग महिलाएं

अनुभव की जीवित पुस्तकें हैं बुजुर्ग महिलाएं

जब भी बुजुर्गों की बात होती है, तो अधिकतर चर्चा पुरुषों के अनुभव, संघर्ष और योगदान पर ही केंद्रित रहती है। लेकिन क्या हमने कभी ठहरकर यह सोचा है कि हमारे घरों की बड़ी बुजुर्ग महिलाएं भी अनुभव की जीवित पुस्तकें हैं, जिनमें जीवन की अनगिनत कहानियाँ, परंपराओं की गहराई और व्यवहारिक ज्ञान छिपा हुआ है?

आज की तेज़ रफ्तार जिंदगी में हम अक्सर उस अनमोल खजाने को नज़रअंदाज़ कर देते हैं जो हमारे घर की बड़ी महिलाएं अपने भीतर समेटे बैठी होती हैं। वे न केवल परिवार की रीढ़ रही हैं, बल्कि समय के साथ उन्होंने समाज, रिश्तों और जीवन के प्रति जो समझ विकसित की है, वह नई पीढ़ी के लिए मार्गदर्शन का काम कर सकती है।

हमारे समाज में दादी-नानी का स्थान विशेष रहा है। उनके पास कहानियों का भंडार होता है, जिनमें न केवल मनोरंजन होता है, बल्कि जीवन मूल्य भी समाहित होते हैं। उनकी कहानियाँ हमें नैतिकता, सहिष्णुता, त्याग और प्रेम का पाठ पढ़ाती हैं। परंतु अफसोस की बात यह है कि अब हम इन बातों को ‘पुराना जमाना’ कहकर टाल देते हैं और उनका महत्व कम कर देते हैं।

बड़ी बुजुर्ग महिलाओं ने अपने जीवन में अनेक प्रकार की परिस्थितियाँ देखी होती हैं — आर्थिक तंगी, सामाजिक बदलाव, पारिवारिक चुनौतियाँ — और इन सबसे पार पाकर उन्होंने जो धैर्य और समझ विकसित की है, वह किसी भी स्कूल या कॉलेज से नहीं सीखी जा सकती। उनके अनुभव हमें जीवन की कठिन परिस्थितियों में संतुलन बनाना सिखा सकते हैं।

आज की पीढ़ी तेज़ी से डिजिटल और व्यावसायिक दुनिया की ओर बढ़ रही है, लेकिन साथ ही वह मानसिक तनाव, अकेलेपन और असंतुलन से भी जूझ रही है। ऐसे में यदि हम अपने घर की बुजुर्ग महिलाओं से संवाद करें, उनके अनुभवों को सुनें, तो शायद हम एक संतुलित जीवन की दिशा में बढ़ सकें। वे हमें सिखा सकती हैं कि सीमित संसाधनों में भी खुश कैसे रहा जा सकता है, परिवार को एक सूत्र में कैसे बांधा जा सकता है, और विपरीत समय में कैसे धैर्य रखा जाता है।

उनकी इस समझ का हम लाभ कुछ इस प्रकार भी ले सकते हैं।

हमारे घरों में बुजुर्ग महिलाएं बहुत कुशलतापूर्वक आस पड़ोस के बच्चों को अपनी योग्यतानुसार तरह तरह के कौशल सिखा सकती है। इस उम्र में आकर सभी महिलाओं का पाक कला में निपुण होना तो स्वाभाविक ही है पर इसके अतिरिक्त अन्य कई कौशल सिखाने की क्षमता भी अनेकों में मिल जाएगी।

उदहारण स्वरूप अगर किसी में पढ़ाने की क्षमता है तो वो यह कार्य अविलंब शुरू कर सकती हैं, इस बढ़ी हुई उम्र में भी। हो सकता है बहुत तो शिक्षा के क्षेत्र से ही रिटायर हुए हों। अपने घर पर ही जरूरतमंद काम वाली के बच्चों को कोचिंग चाहिए तो उन्हें सहयोग कर सकती है। इसी तरह अगर पास ही कोई कन्सट्रंक्शन का काम चल रहा हो तो उन मजदूरों के बच्चों को भी पढ़ाने का बीड़ा उठाया जा सकता है। हम बहुत दान करते होंगे पर शिक्षा दान से अच्छा और क्या दान हो सकता है।

महिलाओं में सिलाई कढ़ाई का कौशल भरपूर होता है। ये जब छोटी थी तब तो यह सब सिखना अनिवार्य ही होता था। बहुतों को तो यह भी याद होगा कि उनको विवाह के समय यह पूछा जाता था कि वो क्या क्या सिलाई, कढ़ाई और बुनाई कर सकती है। अपने घरों पर जो काम वाली बाई आती है, उन्हें या उनकी लड़कीयों को यह कला सिखायी जा सकती हैं। उनको अतिरिक्त आय का साधन मिल जाएगा।

कितने तो अपने युवावस्था में गाने-बजाने में एक्सपर्ट रही होगी। वो अपनी इस कला को सिखा सकती है। ये तो कुछ उदाहरण हमने यहां दिये है। आपका ध्यान इस ओर भी ले जाना चाहेंगे कि कुछ ही माह पूर्व नेवर से रिटायर्ड यूट्यूब चैनल के लिए हमने एक 85 वर्षिय महिला से साक्षात्कार लिया था जो आज भी अपने घर में हस्तकला कर कुछ न कुछ बनाती रहती है। उनका समय अच्छे से व्यतीत हो जाता है और कुछ अतिरिक्त आय भी हो जाती है। हमारे नेवर से रिटायर्ड के यूट्यूब चैनल पर इनका वीडियो जरूर देखें। ऐसी बड़ी उम्र के कर्मशील व्यक्तित्व ओरों को भी प्रोत्साहित करते हैं।

अपने कॉलोनी के बच्चों को गीता और रामायण का पाठ पढ़ा सकते हैं। इससे अपना भी समय अच्छा बीतेगा और हम हमारे संस्कार भी उनको दे सकेंगे। मेरे कुछ परिचित यह कर भी रहे हैं और वह बहुत खुश हैं। उनके मन में यह विचार आता है कि वो समाज के लिए कुछ कर रहे हैं, अपने धर्म के लिए कुछ कर रहे हैं।

हम उन्हें केवल सेवा लेने का माध्यम न समझें, बल्कि उनका सम्मान करें, उनके विचारों को महत्व दें। उनके पास रसोई से लेकर रिश्तों तक की समझ है, जिसका लाभ हमें पूरे जीवन भर मिल सकता है।

अंत में यही कहना चाहूँगा कि यदि हम अपने घर की बड़ी महिलाओं को सिर्फ ‘बुजुर्ग’ नहीं, बल्कि ‘अनुभव की धरोहर’ मानें, तो हम एक ऐसे समाज की ओर बढ़ेंगे जो जड़ों से जुड़ा हुआ होगा और भविष्य की ओर सशक्त कदम बढ़ाएगा। उनकी उपेक्षा नहीं, उनका सहयोग — यही समय की माँग है।

लेखक

विजय मारू
विजय मारू

लेखक नेवर से रिटायर्ड मिशन के प्रणेता है। इस ध्येय के बाबत वो इस वेबसाइट का भी संचालन करते है और उनके फेसबुक ग्रुप नेवर से रिटायर्ड फोरम के आज कोई सोलह सौ सदस्य बन चुके है।

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