कुछ दिनों पहले की बात है। मैंने 75 वर्ष की उम्र पार कर ली। जीवन की इस अवस्था में जब पीछे मुड़कर देखता हूं, तो लगता है जैसे समय पंख लगाकर उड़ गया। अब सामने बुढ़ापा खड़ा है, और ऐसा लगता है जैसे वह कुछ ज्यादा ही तेजी से मेरी ओर बढ़ रहा है। यह एहसास और भी गहरा तब हो जाता है, जब सफर में अजनबी लोग मुझे “अंकल जी” कहकर संबोधित करते हैं। घर-परिवार और मित्रों की बातचीत भी उम्र को केंद्र में रखकर ही चलती है – कि अब क्या करना चाहिए और क्या नहीं। उस समय मन में एक विद्रोही विचार आता है – “क्या मैं अब भी यह कह सकता हूं कि बुढ़ापा, अभी न आ!”
याद आने लगते हैं वे दिन – भले ही 50 साल पहले की बात हो, पर लगता है जैसे कल ही की हो। कभी हम दौड़ते-भागते थे, उफान से भरे हुए, और आज… आज एक वॉकिंग स्टिक का सहारा चाहिए। शरीर धीरे-धीरे थकता है, पर मन अब भी जवान रहना चाहता है। कहीं पढ़ा था, या शायद किसी संत के प्रवचन में सुना था, कि भगवान ने मनुष्य को 100 वर्ष की उम्र दी है, लेकिन साथ ही अनुशासन, संयम और सजगता का पालन करने को भी कहा है। खानपान, व्यायाम और मानसिक विचारों में संतुलन रखा जाए तो यह उम्र आराम से पाई जा सकती है। पर शायद हम जीवन की दौड़ में इतना उलझे रहे कि इन बातों पर ध्यान ही नहीं दिया।
अब भूतकाल को बदला नहीं जा सकता, लेकिन वर्तमान हमारे हाथ में है। और भविष्य अभी भी हमारे प्रयासों पर निर्भर करता है। तो क्यों न इस बची हुई जिंदगी को ऐसे जिएं कि यह ‘सुनहरे वर्ष’ सच में सुनहरे बन जाएं?
हमें अब इस बात से कोई लाभ नहीं कि युवावस्था में क्या छूट गया, क्या करना था, और क्या नहीं किया। वह जिम्मेदारी अब नई पीढ़ी की है – और सच कहूं, वे हमारी बातों को सुनेंगे भी या नहीं, यह कहना कठिन है। हमने जो कहा, जो सिखाया, वह हमारे समय की भूमिका थी। अब समय है खुद पर ध्यान देने का – शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत बने रहने का। हम क्या कर सकते हैं इस पर जरा विचार करे।
- बुढ़ापे से कहें – ठहरो अभी!
- स्वास्थ्य को प्राथमिकता दें
- मानसिक सेहत का ध्यान रखें
- रिश्तों को संजोएं
- नए शौक विकसित करें
- सामाजिक योगदान में सक्रिय रहें
बुढ़ापे से कहें – ठहरो अभी!
हां, सबसे पहले तो यही प्रण लें कि बुढ़ापा अभी न आए। हम उसे बुलाने में थोड़ा विलंब कर सकते हैं, अगर हम चाहें तो। आप कहेंगे की कौन नहीं चाहेगा यह करना पर क्या हम अपनी जीवन शेली को आवश्यकतानुसार ढ़ालते है। और यहां पहले की बात नहीं करेंगे, कि क्या क्या कर सकते थे, हम केवल बात करेंगे कि अभी हम क्या कर सकते है।
स्वास्थ्य को प्राथमिकता दें
हर दिन शरीर के लिए 2–3 घंटे अवश्य निकालें। योग, प्राणायाम, मॉर्निंग वॉक, हल्का व्यायाम – जो भी संभव हो, उसे आदत बनाएं। यह न सिर्फ शरीर को सक्रिय रखता है, बल्कि आत्मविश्वास भी बनाए रखता है। सब जानते है, पर सवाल तो यह है कि क्या हम इस का नियमित पालन करते है। मन में यह निश्चित करने की आवश्यकता है कि आलस्य किसी भी बहाने नहीं करना है।
मानसिक सेहत का ध्यान रखें
यह उम्र सबसे ज्यादा मनोबल के सहारे ही चलती है। सकारात्मक लोगों से मिलना, अच्छी किताबें पढ़ना, प्रेरणादायक लेखों या प्रवचनों को सुनना, मानसिक शक्ति को बनाए रखता है। नकारात्मकता से दूर रहें – यह एक धीमा ज़हर है, जो बुजुर्गों को सबसे पहले जकड़ता है। आजकल बहुत से ऐसे खेल आपको मिल जाएंगे जिसे खेलने से मानसिक सेहत सुधारने में सहयोग मिलता है। मेरे कुछ मित्रों ने सलाह दी कि क्रॉसवर्ड, सुडोकू जैसे मस्तिष्क के खेल नियमित रूप से करें। मैंने भी अब इन्हें अपनाया है। इससे याददाश्त बनी रहती है और मस्तिष्क की कार्यक्षमता बनी रहती है।
रिश्तों को संजोएं
इस उम्र में सबसे जरूरी है – संबंधों की गर्माहट। परिवार, मित्र, पड़ोसी – सभी से संवाद बनाए रखें। साझा हंसी, हल्की-फुल्की बातें, एक-दूसरे का सहारा – यही जीवन की सच्ची थकान को मिटाते हैं। कभी फोन करके हालचाल पूछ लें, कभी चाय पर बुला लें, कभी कोई पुरानी बात याद करके साथ हंस लें – ये सब जीवन में नई ऊर्जा भरते हैं। हम उम्र के लोगों के साथ आउटिंग पर जाना भी बहुत लाभदायक हो सकता है।
नए शौक विकसित करें
क्यों न अब कुछ नया शुरू किया जाए? पेंटिंग, बागवानी, संगीत, लेखन – वह सब जो जीवन की व्यस्तता में छूट गया था। ये शौक न सिर्फ रचनात्मक ऊर्जा देते हैं बल्कि अकेलेपन को भी दूर करते हैं। हो सकता है आप इनमें से कुछ में एक्सपर्ट हो – इनमें आप दुबारा नियमित अपने आप को व्यस्त करे। एक कदम और आगे बढ़ कर आप अपनी यह कला दूसरो के साथ भी बांट सकते है।
सामाजिक योगदान में सक्रिय रहें
हमारे अनुभव किसी खजाने से कम नहीं। बच्चों को और युवा को पढ़ाना का दायित्व आप ले सकते है। आप जब पढ़ाएंगे तो साथ में आप स्वाभाविक रुप में संस्कार भी देंगे। विचार किजिए इससे कितनो को आप लाभ पहुंचाएंगे। साथ ही आपको इस कार्य से जो खुशी मिलेगी उसका वर्णण करना मुश्किल है।
आपको बस मन में ठान लेना है कि अभी मन जवान है, बुढ़ापा ठहर जा। आपका सफर बाकी है और थकना मना है, भले आपकी उम्र कहती है रुक जा पर दिल तो कह रहा है चल। हमें सुनहरा बुढ़ापा नहीं, सक्रिय जीवन चाहिए। जीवन के इस मोड़ पर भी, हमारी उम्मीद जवान है, बुढ़ापा दरवाज़े पर दस्तक दे रहा है, पर मैंने ताला लगा दिया है, यहीं हमें मन में रखना है। हमें अपनी उम्र की नहीं, ऊर्जा की गिनती करनी हैं और इसे बढ़ाने का भरपूर प्रयास करना है।
लेखक

लेखक नेवर से रिटायर्ड मिशन के प्रणेता है। इस ध्येय के बाबत वो इस वेबसाइट का भी संचालन करते है और उनके फेसबुक ग्रुप नेवर से रिटायर्ड फोरम के आज कोई सोलह सौ सदस्य बन चुके है।