समय के अविरल प्रवाह में मनुष्य के सौ वर्ष जीने की कामना हमारे कृती पूर्वपुरुषों ने की है…सौ शरद, सौ वर्ष तक स्वस्थ रहकर अपनी आँखों से देखते,बोलते,अदीन होकर जीने की कामना| वेद कहते हैं…
सहस्र चन्द्रदर्शन की शुभेच्छा भी हमारी परंपरा में है| एक हज़ार पूर्ण चंद्र का दर्शन अर्थात् वही मनुष्य के शतवर्ष जीने की इच्छा |शतायु होने का आशीर्वाद भारत में बड़े, बूढ़े देते आए ही हैं|
इन सौ वर्षों के जीवन को जीने की सुचारु व्यवस्था का निर्देश भी हमारी परंपरा में है |पच्चीस वर्ष ब्रह्मचर्य, अगले पच्चीस वर्ष गृहस्थ, फिर पच्चीस वर्ष वानप्रस्थ और अंतिम पच्चीस वर्ष संन्यास|
इन सौ वर्षों में साठ वर्ष की आयु की बड़ी महत्ता हमने मानी है| इस आयु तक ज्ञान और अनुभव की युति से व्यक्ति का व्यक्तित्व गरिमामय, देदीप्यमान हो उठता है| षष्टिपूर्ति के अवसर पर अभिनंदन करने की परंपरा अपने भारत देश में सर्वत्र दिखाई देती है| यह उसके प्रौढ़ व्यक्तित्व की स्वीकृति एवं वंदना ही तो है| भारतीय जीवन-पद्धति के अनुसार योग आदि के द्वारा शरीर भी ओजस्वी होता ही है| साठे पर पाठा अपने यहाँ पुरानी कहावत है|
ध्यान दें तो हमारा जीवन-दर्शन व्यक्ति को केवल शरीर नहीं, शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा का समुच्चय मानता आया है| उपनिषद् और गीता विविध प्रकार से इसका आख्यान करते आए हैं| इनके बीच का सुष्ठु तारतम्य स्वास्थ्य की गारंटी है| शरीर में कोई व्याधि नहीं, मन में कोई आधि अर्थात् मनोरोग नहीं, बुद्धि सबके हित के विधान के लिए सोचती है और आत्मा के उत्थान का अभ्यास हम सतत करते हैं तो हम स्वस्थ हैं| “आत्मनः मोक्षार्थं जगद्धिताय च “…| विचार करेंगे तो पाएँगे कि व्यक्ति का ऐसा उदार मन और सम्यक् स्थिति इस साठ वर्ष के आस-पास ही होती है| नौकरी से सेवानिवृत्ति हो या व्यवसाय नई पीढ़ी को सँभलवा कर दायित्व से मुक्ति की यही आयु है| धनार्जन किया है, इसलिए अभाव नहीं| आवश्यकताएँ सीमित| बहुत कम में जीवनयापन किया जा सकता है, यह करोना काल की सबसे बड़ी शिक्षा है| उतनी ही बड़ी शिक्षा दूसरों के लिए जीने की भी है| जगद्धिताय के मर्म को हम ठीक से अब समझ सके हैं|
मैं वृंदावन का निवासी हूँ| वहाँ के इंटर कॉलेज के सेवानिवृत्त हुए एक अध्यापक ने कहा… अब पैसे के लिए काम नहीं करुँगा| रामकृष्ण मिशन अस्पताल में जाकर कुछ भी काम करने की इच्छा उन्होंने व्यक्त की| प्रातः आठ बजे से एक-दो बजे तक सेवाकार्य| दोपहर में भोजन, विश्राम, सायंकाल मंदिरों में भगवद्दर्शन, कथाश्रवण, यही क्रम| पति-पत्नी का यह आनंददायी जीवनक्रम| किसी अभाव की अनुभूति नहीं, किसी मनोरोग चिकित्सक की दूर-दूर तक आवश्यकता नहीं|
स्वाध्याय भी एक ऐसा ही माध्यम है| तैत्तिरीयोपनिषद् तो स्पष्ट कहता है…स्वाध्यायान्मा प्रमदः और स्वाध्यायान्मा प्रमदितव्यम्… इसे आप आदेश कहिए या परामर्श| एक विद्वान् ने कहा था कि मेरे घर में एक सुंदर बगीचा हो और एक समृद्ध पुस्तकालय तो मुझे और किसी वस्तु की आवश्यकता नहीं| स्वाध्याय तो मन, बुद्धि, आत्मा को तृप्त रखता है|
स्थिति सम हो अथवा विषम… शरीर, मन, बुद्धि को साधे रखने वाले को अधिक विचलित करती नहीं| नकारात्मकता से उबर आने की अद्भुत क्षमता उसे ईश्वरप्रदत्त होती है| शीघ्र ही वह अपने कर्तव्यकर्म का निश्चय कर समाजसेवा में निरहंकारी भाव से जुटता है| करोना के इस भयंकर काल में भी अभयंकर हो लोकसाधना की वृत्ति, साहस, लगन की कुंजी साठे पर पाठे हुए ज्ञान, अनुभव से समृद्ध उस व्यक्ति के पास ही है| वह केवल अपने लिए नहीं सोचता, अपने लिए योजना नहीं बनाता, मनोरोगी नहीं होता और इसीलिए मनोगत सभी स्वार्थों से हटकर, सभी कुंठाओं से मुक्त हो,अकुंठ होकर जीता है, सबके लिए जी सकता है| काल के सामने महाकाल की जय का उद्घोष कर, सत् श्री अकाल का पूजन वह ही करता है| शत्रु से समर हो या महामारी से संघर्ष, दिनकर को स्मरण कीजिए…
Author Bio
डॉ. ललित बिहारी गोस्वामी
सेवानिवृत्त एसो. प्रोफेसर
अध्यक्ष, विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान, कुरुक्षेत्र |
अध्यक्ष, सुरुचि प्रकाशन ट्रस्ट, दिल्ली |
संपादक, विद्या भारती प्रदीपिका
पूर्व महामंत्री, विद्या भारती
पूर्व सदस्य, कार्यकारी परिषद् ,महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रिय हिंदी वि.वि.वर्धा
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Really very interesting and beautifully explain ed manh status of mind.in magahi(Magadh) of Bihar,aged peoples worshipped as Shanker parvati and younger man and woman never go on tour if their parents are alive.i have retired and enjoying quality life.in morning one hour gaytri yagya followed by swadhyay after one hour yaga and pranayam and in evening one hour Swadhyay.our learning singing,doing cycling as hobby and self realisation is our mission.Besides it we searches peoples to offer selfless service.I am fully satisfied. Thanks sir.
Hamare purwajon dwara banayee gayi jivan
Prannali or unka Adhatmik gyan, jivan ke prati unki dharna,Hame sahi marg par jane ki or preshit karti ha.Yeh VED ki hi den ha ki
aaj