जितनी चाबी भरी राम ने उतना चले हम

जितनी चाबी भरी राम ने उतना चले हम
अंधा कानून फिल्म में एक गीत था,
रोते रोते हंसना सीखो,
हंसते हंसते रोना,
जितनी चाबी भरी राम ने
उतना चले खिलौना।

कवि ने कितनी गंभीर बात को इतनी सहजता से लिख दिया। हम नहीं जानते हैं कि हमें कब यमराज लेने आ जाएंगे। भगवान ने कितनी चाबी हम में भरी उसका सीक्रेट तो वो ही जानते हैं।

हम सब इस सच्चाई को जानते हुए भी आपस का द्वेष, भाई भाई का झगड़ा, पैसा कमाने की होड़ में एक-दूसरे से झूठ बोलने या गलत व्यवहार करने से भी परहेज नहीं करते। अहम इतना ज्यादा हो जाता है कि सामने वाले को नीचा दिखाना ही हमारा एकमात्र उद्देश्य हो जाता है। हमें अपनी गलती का एहसास तब होता है जब हम मृत्यु शय्या के नजदीक होते हैं।

अंतिम संस्कार के लिए जब लोग श्मशान पर एकत्र होते है तब बहुत अच्छी अच्छी बाते करते हैं। एक-दूसरे को खूब ज्ञान देते है, गलत काम न करने के लिए, आपस में सौहार्द बना कर रखने के लिए, आदि- आदि। इस वातावरण में ऐसी सकारात्मक बांते करने का कारण यह होता हैं कि सामने दिखती व्यक्ति की अंतिम विदाई हमें झकझोर देती है। हम भी जीवन की इस सच्चाई से मुंह नहीं मोड़ सकते कि अंत समय में हमे चार लोगो के कंधो पर तो यहीं आना हैं। इन सब चर्चा में बुजुर्ग व्यक्ति बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। और क्यू नहीं। बुजुर्गो ने अपने जीवन में बहुत कुछ देखा, सुना और समझा है। लेकिन अंतिम संस्कार हो जाने पर श्मशान से निकलने के बाद जल्द ही वापस उसी आपाधापी में सब लग जाते हैं।

अपने को बहुत ऐसे किस्से सुनने को मिल जाएंगे कि कैसे जवानी में किसी व्यक्ति ने दम तोड़ दिया, जब कि वो स्वस्थ था, कोई बुरी आदत नहीं थी, योग व व्यायाम नियमित करता था। और दूसरी ओर अनेकानेक ऐसे भी व्यक्ति हैं जिनकी आयु काफी हो गई हैं और वो अपना स्वस्थ जीवन जी रहे हैं। बात वहीं आकर ठहर जाती है कि भगवान राम ने जितनी चाबी भरी थी उतनी जिन्दगी रही।

भगवान को हम अपने मन में बैठा ले, सभी से अपना व्यवहार अच्छा रखे, जरूरतमंद की सेवा करने में कभी पीछे न हटे, तो निश्चित हम खुशी खुशी अपना जीवन निर्वाह करेंगे। एक प्रवचन में वक्ता की यह बात बहुत अच्छी लगी – वो बोलते हैं “प्रभु भक्ति दो, शक्ति दो, चलते चलते मुक्ति दो।” वैसे देखे तो मृत्यु कोई नहीं चाहता है, पर अगर अंतिम दिनो में हम स्वस्थ रहे, अपनी नित्य क्रिया खुद कर सके तो इससे सुखमय जीवन और क्या हो सकता है।

यह सब देखते हुए अपने शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य पर पूर्ण रूप से ध्यान देना बहुत आवश्यक है। यह समझ कर निश्चिंत न हो जाएं कि जब जिंदगी की चाबी श्रीराम के पास है तो हमें क्या करना है। हमारा ध्येय यह होना चाहिए कि हम जीवन की दौड़ में अंतिम पड़ाव पर पहुंचने तक अपने आप को प्रसन्न व स्वस्थ रख सके।

जीवन के इस पड़ाव पर हमें क्या फर्क पड़ता है कि हमारा घर बड़ा है या छोटा, न हमे इससे फर्क पड़ता है कि हमारे पास कितनी पूंजी है इस आयु में। अब किसी तरह की कोई अभिलाशा भी नहीं रहती है मन में, कि कोई नये कपड़े खरीदने हैं या बड़े रेस्टोरेंट में जाना हैं। उद्देशय तो केवल इतना होना चाहिए कि हम प्रसन्न रहे, स्वस्थ रहे, किसी के उपर बोझ नहीं बने। हमउम्र के लोगो के साथ दोस्ती करे, वाट्सएप ग्रुप बनाए व खूब बांते करे। आपस में पार्टियां करे, नांचे-गाएं, वगैरह। यह न सोचे कि लोग क्या कहेंगे। जिदंगी आपकी है और इस पर केवल आपका अधिकार है। बाकी सब तो भगवत कृपा ही है।

अच्छे कर्म करे और हम भगवान से यहीं प्रार्थना जरूर करे कि हमारे जैसे खिलौनो में चाबी यथायोग्य भरे।

लेखक

विजय मारू
विजय मारू

लेखक नेवर से रिटायर्ड मिशन के प्रणेता है। इस ध्येय के बाबत वो इस वेबसाइट का भी संचालन करते है और उनके फेसबुक ग्रुप नेवर से रिटायर्ड फोरम के आज कोई सोलह सौ सदस्य बन चुके है।

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