किसी को यह नहीं पता कि उनका अंत कब होने वाला है पर यह निश्चित है कि इस घड़ी को दूर ले जाने में हमारे दोस्त बहुत सहयोग करते है।
एक बहुत ही चर्चित पुस्तक है, द टाॅप फाइव रिग्रेट्स ऑफ़ द डाईंग। इसे सरल हिन्दी में कहे तो – मौत के समय लोगो को किन पांच बातों का अधिकतम अफसोस होता है।
ऑस्ट्रेलिया की ब्रॉनी वेयर द्वारा लिखित इस बेस्ट सेलर को प्रकाशन के पहले ही वर्ष में दुनिया भर के करीब 30 लाख लोगों ने पढ़ा। ब्राॅनी ने कुछ बुजुर्गों से जो अपने अंतिम वर्षों में अस्पताल के एक विभाग, पैलियाटिव केयर, जहां कैंसर जैसी लाइलाज बीमारियों से ग्रस्त मरीजों की पीड़ा को कम कर उन्हें राहत पहुंचाने पर ध्यान दिया जाता है, में भर्ती थे, उनसे बातचीत के आधार पर लिखी। कई वर्ष तक लेखिका ने इस अस्पताल में काम किया। ये पांच रिग्रेट्स लेखिका के अनुसार है….
- काश, मैंने अपनी जिंदगी को अपनी तरह से जिया होता, न कि उस तरह जैसा दूसरों ने मुझसे उम्मीद की!
- काश, मैंने इतनी ज्यादा मेहनत नहीं की होती!
- काश, मैंने अपनी भावनाएं जताने की हिम्मत की होती!
- काश, मैंने अपने दोस्तों से संपर्क नहीं खत्म किया होता!
- काश, मैंने अपने को खुश रखा होता!
इस लेख में हम केवल चार नम्बर पर अपना ध्यान केंद्रित करते है – काश, मैने अपने दोस्तों से संपर्क नहीं खत्म किया होता।
हमे यह सीख लेनी है कि हम अपने अंतिम वर्षो में इस मित्र-मंडली का न होने का अफसोस नहीं करेंगे। हालांकि किसी को यह नहीं पता कि उनका अंत कब होने वाला है पर यह निश्चित है कि इस घड़ी को दूर ले जाने में हमारे दोस्त बहुत सहयोग करते है। पांच मे से उस चौथे अफसोस की लाइन से हमें पहला शब्द ‘काश’ को डिलिट कर देना है। और आज, अभी से अपने दोस्तो से संपर्क बढ़ाना है।
हमारी भी एक मित्र-मंडली है। प्रत्येक शनिवार शाम को एक होटल में बैठकर गपियाते है। कोई जरूरी नहीं होता कि सभी प्रत्येक शनिवार को सम्मिलित हो, पर एक नियम बना रखा है कि आधे सदस्य जरूर उपस्थित हो वर्ना मिलने का कार्यक्रम कौन्सिल। वर्षो से हम मिल रहे है। अब तो कब शनिवार आये इसका बेसब्री से इंतजार रहता है।
एक वाक्या बताता हूं। हम परिवार के साथ दोपहर का भोजन लेने रेस्टोरेंट गए। बैठे थे तो देखा कोने में एक बड़ी टेबल पर दो बुजुर्ग महिला बैठी थी। जल्द ही उनकी टेबल पर और साथी जुड़ते गए और कूल नो महिलाएं हो गई। गपशप होती रही, खूब हंसी-मजाक चल रहा था। उनकी खुशी देखकर हम भी आनंदित हो रहे थे। वेटर से बुलाकर जिज्ञासावश पूछा की क्या उनमे से किसी बुजुर्ग का जन्मदिवस है। वेटर ने बहुत दिलचस्प बात बताई कि ये सब रिटायर्ड टीचर्स है और प्रत्येक सप्ताह लंच पर आकर कोई दो-तीन घंटे यहां बिताती है।
इसी तरह बहुत एल्यूमनाई ग्रुप्स, स्कूल व कॉलेज के बेचमेट्स के, अलग अलग शहरो में बने हुए है। वाट्सएप पर तो है ही ज्यादातर, कुछ फिजीकली भी प्रत्येक माह मिलते है। जब पुराने दोस्त मिलते है तो साथ बिताये दिनों की बात का आनंद कुछ और ही होता है।
लेखक
लेखक नेवर से रिटायर्ड मिशन के प्रणेता है। इस ध्येय के बाबत वो इस वेबसाइट का भी संचालन करते है और उनके फेसबुक ग्रुप नेवर से रिटायर्ड फोरम के आज कोई सोलह सौ सदस्य बन चुके है।
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