जब युवा अपने बुज़ुर्ग माता-पिता या प्रियजनों को मोबाइल फोन पर घंटों अपना समय बिताते देखते हैं तब उनके मन में थोड़ी थोड़ी निराशा होने लगती है। हाल ही में मेरी एक ऐसे व्यक्ति से बातचीत हुई जो अपने पिता के मोबाइल डिवाइस के लगातार उपयोग से चिंतित थे। “बस वो केवल अपना समय बर्बाद कर रहे है,” उन्होंने कहां। “अगर ध्यान दे तो वो कुछ अधिक उत्पादक काम कर सकते थे।”
लेकिन केवल फोन पर व्यस्त रहने की उनकी आदत के लिए उनसे नाराज होने के बजाय, मैंने अपना दूसरा दृश्टिकोण पेश किया। क्या हमने कभी यह विचार किया कि उनसे बात करने वाले भी तो कोई नहीं है, इसी कारण वह अपना ज्यादा समय इस फोन के माध्यम से बिताते हैं। तकलीफ तो हमें तब होनी चाहिए जब हम उनके पास बैठते है, उनसे बात करने कि कोशिश करते है पर वो अपने मोबाइल को छोड़ ही नहीं रहे हैं और हमारी बातों को अनसुनी कर रहे हैं।
जुड़ना भी एक कला है
जैसे-जैसे लोगों की उम्र बढ़ती है, अकेलापन एक मूक साथी बन जाता है। कई वरिष्ठ नागरिकों के लिए, खास तौर पर जो अकेले रहते हैं, उनके फोन दुनिया की एक खिड़की के समान हो सकते हैं, जहां एक छोटी सी स्क्रीन पर बहुत कुछ दिखने को मिल जाता है। ठीक उसी प्रकार जब हम अपने कमरे की खिड़की खोलते हैं, बाहर के दृश्य को देख कर मन को बहुत शकून मिलता है। ऐसे समय में जब आपसी संपर्क कम हो जाता है, डिजिटल रूप से दूसरों से जुड़ने की क्षमता एक जीवन रेखा हो सकती है। वाट्सएप, फेसबुक और यहाँ तक कि यूट्यूब जैसे सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म सिर्फ मनोरंजन ही नहीं, उससे कहीं ज़्यादा देते हैं – वे वरिष्ठ नागरिकों को सामाजिक रूप से जुड़े रहने, देश-दुनिया में क्या हो रहा हैं उसकी जानकारी और व्यस्त रहने का एक साधन देते हैं।
डिजिटल इंटरेक्शन का आशीर्वाद
कुछ लोग फेसबुक पर अंतहीन स्क्रॉलिंग या यूट्यूब पर वीडियो देखना समय की बर्बादी मानते हैं, पर इसके आगे भी विचार करना महत्वपूर्ण है। कई वृद्ध वयस्कों के लिए यह अक्सर उनका एकमात्र इंटरेक्शन होता है। चाहे वह पुराने दोस्तों के साथ संदेशों का आदान-प्रदान हो या परिवार के सदस्यों के साथ रहना हो, ये छोटी-छोटी बातचीत अपनेपन की भावनाओं से जुड़ जाती हैं।
इसके अलावा, ऑनलाइन उपलब्ध सामग्री की प्रचुरता के साथ, वरिष्ठ नागरिक ऐसे वीडियो तक पहुंच सकते हैं जो उन्हें आन्तरिक सुकून देते हैं। उनमें से कई आध्यात्मिक और धार्मिक प्रवचनों की तलाश करते हैं – ये नासमझी को विचलित करने वाले नहीं हैं, बल्कि सांत्वना के स्रोत हैं जो उन्हें अपने विश्वास और दुनिया से अधिक जुड़ाव महसूस करने में सहयोग करते हैं। ये डिजिटल संसाधन उन्हें शांति और समझ की भावना प्रदान करते हैं और गहराई से देखे तो सुकून प्राप्त कराते हैं, खासकर जब वे अपने जीवन के अंतिम वर्षों पर विचार करते हैं।
डिजिटल युग में आध्यात्मिक और शैक्षिक मूल्य
आधुनिक तकनीक की खूबसूरती यह है कि यह हमें सीखने और विकास के लिए अंतहीन अवसर प्रदान करती है। वरिष्ठ नागरिकों के लिए, यूट्यूब और अन्य प्लेटफ़ॉर्म मनोरंजन से कहीं बढ़कर बन गए हैं – वे आध्यात्मिक पोषण के साधन हैं। चाहे भरपूर धर्मोपदेश सुनना हो, निर्देशित ध्यान देखना हो, या धार्मिक शिक्षाओं की खोज करना हो। ये डिजिटल स्थान अक्सर स्वर्णिम वर्षों में उद्देश्य और अर्थ की अत्यंत आवश्यक भावना प्रदान करते हैं।
स्क्रीन टाइम पर एक अलग नजरिया
अपने प्रियजनों की फोन की आदतों को आंकने या उनकी इस आदत से नाराज होने से पहले, यह विचार करना जरूरी है कि स्क्रीन के दूसरी तरफ़ क्या हो रहा है। कई वरिष्ठ नागरिकों के लिए, उनके फोन दुनिया से जुड़ने का एक तरीका हैं, भले ही वे कितना ही अकेला जीवन यापन कर रहे हैं। शायद उनके मोबाइल फोन के उपयोग को निराश करने वाली चीज के रूप में देखने के बजाय, हम इसे एक ऐसे उपकरण के रूप में देख सकते हैं जो उन्हें जुड़ने, सीखने और एक समृद्ध, अधिक संतुष्टिदायक जीवन जीने में सहायता करता है। कभी कभी मोबाइल को वो अपना अन्तरंग सखा भी मान लेते है।
युवा जन यह समझे कि जब आप अपने बुज़ुर्ग माता-पिता या रिश्तेदार को अपने फ़ोन पर स्क्रॉल करते हुए देखें, तो याद रखें कि वो केवल अपना समय बर्बाद नहीं कर रहे हैं। हो सकता है कि वे किसी दोस्त से बात कर रहे हों, कोई सार्थक वीडियो देख रहे हों या आध्यात्मिक बातचीत में सांत्वना पा रहे हों। इस डिजिटल युग में, स्मार्टफ़ोन सिर्फ युवा पीढ़ी के लिए नहीं हैं – वे वरिष्ठ नागरिकों को जुड़ने, सीखने और बुढ़ापे की चुनौतियों का थोड़ा और शांति से जीवन का सामना करने में सहयोग कर रहे हैं। यह भी विचार करना चाहिए कि अगर उनके पास मोबाइल न होगा तब उनके व्यवहार में शायद काफी चिड़चिड़ापन और उदासी नजर आएगी।
असली सवाल यह नहीं है कि बुजुर्ग अपने फोन पर बहुत ज़्यादा समय बिताते हैं या नहीं, बल्कि यह है कि क्या घर में अन्य उनसे आमने-सामने बात करने के लिए पर्याप्त समय देते हैं। घर वालो की पर्याप्तता ही बुजुर्गो की सम्पूर्णता है।
लेखक

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