सुनहरे वर्षों में तनाव से बचे

सुनहरे वर्षों में तनाव से बचे

हम जब डॉक्टर के पास जाते हैं अपना चेकअप करवाने तो बड़े उम्र के व्यक्तियों को आमतौर पर यही बताया जाता है कि आप स्ट्रेस बिल्कुल ना ले, और यह खासकर हार्ट की शिकायत वाले व्यक्तियों को तो बहुत जोर देकर बोला जाता है। यह भी कहा जाता है कि आप ज्यादा सोचे नहीं। कई वर्षों पहले मुझे भी जब कुछ ऐसी ही तकलीफ हुई थी दिल की, तो डॉक्टरों ने यही बात कही थी। मेरा उनसे एक ही सवाल था, आप जो बोल रहे हैं वह तो ठीक है पर क्या यह प्रैक्टिकल में इतना आसान काम है। क्या आपके पास ऐसी कोई विधा नहीं है जिससे कि आप सोचने वाली हमारी नस को ही निष्क्रिय कर दे। और कुछ नहीं तो, हम यहीं सोचते रहेंगे कि सोचना कैसे बंद करे।

इसमे कोई दो राय नहीं है कि जिनकी तनाव भरी जिन्दगी रहती हैं उनको अपने स्वास्थ पर विषेश ध्यान देने की आबश्यकता है। बहुत से परिचितों को हम जानते होंगे जो कि निंद की गोलियां या अन्य डि-स्ट्रेस करने की दवाईयां अक्सर लेते हैं। शरिर पर इन दवाईयां का दुष्प्रभाव भी पड़ता ही हैं। तनाव में रहने के बहुत कारण हो सकते हैं। किसी को वित्तीय परेशानी, किसी को पारिवारिक परेशानी, किसी को अपने स्वास्थ्य सम्बन्धित परेशानी हो सकती है। और यहीं सब कारण बन जाते है टेंशन में आने के जिसका स्वास्थ पर बहुत नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

कुछ ही दिनो पहले एक समाचार पढ़ने को मिला जिसमे बताया गया कि एक 115 वर्ष की महिला, जिनका नाम एथेल कैटरहम है, दुनिया की सबसे बुजुर्ग जीवित व्यक्ति है। गीनेस वर्ल्ड रेकॉर्ड्स में भी यह दर्ज है। उनका जन्म शिप्टन बेलिंजर, हैम्पशायर, इंग्लैंड में 21 अगस्त 1909 को हुआ था। इनसे जब इस लंबी उम्र का राज पूछा गया तो बोली कि मेरा खान-पान तो बहुत सादा ही होता है पर जो सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण बात है वो यह कि मै किसी से बहस नहीं करती हूं, किसी से बातों में उलझती नहीं हूं और अपना काम अपनी इच्छानुसार करती रहती हूं। ऐसी भी जानकारी मिली कि वो जब 18 वर्ष की थी तब उनको तीन वर्ष भारत में रहने का मौका मिला था।

उम्र बढ़ना एक ऐसा सफ़र है जो ज्ञान, अनुभव और सरल सुखों का आनंद लेकर आता है। लेकिन इसके साथ ही कई चुनौतियां भी आ सकती हैं – जिनमें से कुछ के बारे में बात करना हमेशा आसान नहीं होता। पारिवारिक गतिशीलता, वित्तीय दबाव और स्वास्थ्य संबंधी चिंताएं, जिनके विषय में पहले भी चर्चा की गई हैं, सभी बुज़ुर्गों के लिए तनाव के स्रोत बन सकते हैं। और जबकि यह जीवन का एक हिस्सा लग सकता है, आधुनिक शोध एक बात स्पष्ट करता है: पुराना तनाव सिर्फ़ असुविधाजनक नहीं है – इसका स्वास्थ पर बहुत नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। मनोवैज्ञानिक आज चेतावनी देते हैं कि लंबे समय तक तनाव, अनसुलझे गुस्से और भावनात्मक संघर्ष से हृदय रोग का खतरा बढ़ सकता है, प्रतिरक्षा प्रणाली कमज़ोर हो सकती है और यहाँ तक कि बुढ़ापे की प्रक्रिया भी तेज़ हो सकती है। शरीर और मन गहराई से जुड़े हुए हैं, और जब भावनात्मक उथल-पुथल लगातार साथी बन जाती है, तो शारीरिक स्वास्थ्य चुपचाप पीड़ित होने लगता है।

इसलिए अनावश्यक बहस से बचने और रोज़मर्रा के नाटक के आकर्षण का विरोध करने वाली मानसिकता को अपनाना सिर्फ़ मन की शांति के बारे में नहीं है – यह बेहतर स्वास्थ्य के लिए एक रणनीति है। भावनात्मक ऊर्जा को संरक्षित करना और संघर्ष के बजाय शांति को चुनना सेहत पर लंबे समय तक चलने वाला प्रभाव डाल सकता है। अध्ययनों से पता चलता है कि जो लोग भावनात्मक स्थिरता के साथ तनाव का जवाब देते हैं और बार-बार टकराव से बचते हैं, वे लंबे समय तक स्वस्थ जीवन जीते हैं। दूसरी ओर, लगातार भावनात्मक तनाव शरीर में सूजन को बढ़ाने से जुड़ा हुआ है, जो हृदय रोग से लेकर मधुमेह तक कई पुरानी बीमारियों में एक प्रमुख भूमिका निभाता है।

बेशक, तनाव कम करने के लिए कहना जितना आसान है, करना उतना आसान नहीं है। इसके लिए अभ्यास, समर्थन और कभी-कभी दृष्टिकोण में बदलाव की आवश्यकता होती है। चाहे वह ध्यान, हल्का व्यायाम, हंसी, सार्थक बातचीत के माध्यम से हो या बस जो नियंत्रित नहीं किया जा सकता है उसे छोड़ देना हो, बुजुर्ग लचीलापन विकसित कर सकते हैं और मन की अधिक शांतिपूर्ण स्थिति को बढ़ावा दे सकते हैं।

बुढ़ापे का मतलब तनाव के आगे समर्पण करना नहीं है। सोच-समझकर चुनाव करने और थोड़ी भावनात्मक गृह व्यवस्था के साथ, बुजुर्ग अनावश्यक चिंताओं का बोझ उठा सकते हैं – और अपने सुनहरे वर्षों में खुशी, जुड़ाव और जीवन शक्ति के लिए जगह बना सकते हैं।

लेखक

विजय मारू
विजय मारू

लेखक नेवर से रिटायर्ड मिशन के प्रणेता है। इस ध्येय के बाबत वो इस वेबसाइट का भी संचालन करते है और उनके फेसबुक ग्रुप नेवर से रिटायर्ड फोरम के आज कोई सोलह सौ सदस्य बन चुके है।

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