आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (ए.आई.) – वरिष्ठ जनों के लिए अवसर और चुनौती

Artificial Intelligence – An Opportunity and a Challenge for Senior Citizens - आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (ए.आई.) – वरिष्ठ जनों के लिए अवसर और चुनौती

आजकल आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (ए.आई.) की चर्चा चारों ओर हो रही है। ऐसा लगता है मानो आने वाले समय में इसके बिना कोई काम ही नहीं हो सकेगा। लेकिन ए.आई. वास्तव में है क्या? अगर ध्यान से देखें तो दशकों पहले भी हम इसका उपयोग करते थे—चाहे वह एक छोटा-सा कैलकुलेटर हो या शुरुआती कंप्यूटर। अंतर बस इतना है कि आज की ए.आई. कहीं अधिक सक्षम, व्यापक और हमारे रोजमर्रा के जीवन में गहराई से जुड़ चुकी है।

चिंता की बात यह है कि यदि हम अपने मस्तिष्क का उपयोग कम करने लगें और हर छोटे-बड़े काम के लिए केवल ए.आई. पर निर्भर हो जाएं, तो कहीं यह हमारी मानसिक सक्रियता को कमजोर न कर दे। आज स्थिति यह है कि एक साधारण पत्र लिखने से लेकर भाषण तैयार करने तक लोग चैटजीपीटी का सहारा लेने लगे हैं। इसी कारण कुछ विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि अत्यधिक निर्भरता हमें सुस्त बना सकती है। हाल ही में एक वीडियो भी वायरल हुआ, जिसमें ए.आई. उपयोगकर्ताओं और सामान्य व्यक्तियों के मस्तिष्क की सक्रियता का अंतर दर्शाया गया।

जब मेरे मन में यह विचार आया कि अगला लेख इसी विषय पर लिखूं, तो मैंने अपने कुछ समूहों और फेसबुक पर वरिष्ठ नागरिकों (70+) से जुड़े लोगों के बीच एक प्रश्नावली साझा की। उद्देश्य था यह समझना कि उन्हें ए.आई. के बारे में कितनी जानकारी है और क्या वे इसे सीखने में रुचि रखते हैं। प्रतिक्रियाएं चौंकाने वाली रहीं। अधिकांश वरिष्ठ जनों को ए.आई. के बारे में कम जानकारी थी, लेकिन सभी जानना चाहते थे कि यह रोजमर्रा की जिंदगी में किस तरह उपयोगी हो सकता है। वहीं, कुछ वरिष्ठ ऐसे भी निकले जो पहले से इसका प्रयोग कर रहे थे।

30 नवंबर 2022 को जब चैटजीपीटी सामने आया, तो इसने दुनिया को चौंका दिया। मैंने जब इसके बारे में अखबारों में पढ़ा, तो जिज्ञासा जागी और मार्च 2023 में मैंने इस पर एक लेख लिखा—“From Google to ChatGPT – What’s In It For Senior Citizens?”। उस समय अपने मित्रों से चर्चा की, तो आश्चर्य हुआ कि किसी को इसके बारे में पता ही नहीं था। आज भी सबसे ज़्यादा प्रचलन चैटजीपीटी का ही है, लेकिन अब तो हर रोज नए-नए ए.आई. प्लेटफॉर्म सामने आ रहे हैं। यह तय करना कठिन हो गया है कि किसका उपयोग सबसे उपयुक्त होगा। कंपनियों के बीच होड़ लगी है—कौन-सा ए.आई. कितना कर सकता है।

निस्संदेह, ए.आई. के फायदे अपार हैं और भविष्य की दुनिया इसी पर आधारित होगी। भारत भी इस दिशा में पीछे नहीं है। आई.आई.टी. जैसे संस्थानों में इस विषय पर शोध और शिक्षा पर जोर दिया जा रहा है। प्रधानमंत्री स्वयं भी समय-समय पर ए.आई. की महत्ता पर बोलते हैं और युवाओं को इस दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं।

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के कुछ नकारात्मक पहलू

ए.आई. के कुछ नकारात्मक पहलू भी नजरअंदाज नहीं किए जा सकते। आजकल डीपफेक वीडियो एक बड़ी समस्या बन चुके हैं, जिनमें किसी भी चेहरे को बदलकर गलत संदेश फैलाया जा सकता है। इससे यह तय करना मुश्किल हो जाता है कि जो हम देख रहे हैं, वह असली है या नकली। हाल ही में एक खबर आई कि एक व्यक्ति ने ए.आई. से दवाइयां सुझवाईं और दुर्भाग्यवश उसकी मृत्यु हो गई। यह भले ही एक चरम उदाहरण हो, लेकिन चेतावनी अवश्य है। दूसरी ओर, यही ए.आई. मेडिकल फील्ड में कई बार वरदान भी साबित हो रही है—एक जटिल बीमारी का निदान ए.आई. ने सुझाया, जिसे कई विशेषज्ञ डॉक्टर भी नहीं पहचान पाए थे।

इसलिए ज़रूरी है कि वरिष्ठ नागरिक भी इस तकनीक से परिचित हों। हमारे पास इतनी जीवनानुभव शक्ति अवश्य है कि हम सही-गलत का अंतर समझ सकें और विवेकपूर्ण ढंग से तय कर सकें कि कितना और किस रूप में इसका उपयोग करना है। नेवर से रिटायर्ड अभियान की ओर से हमारा प्रयास रहेगा कि जल्द ही इस विषय पर कार्यशाला आयोजित की जाए, ताकि वरिष्ठ जन ए.आई. का सही उपयोग सीख सकें।

इस दिशा में केरल सरकार का डिजिकेरेलम कार्यक्रम अनुकरणीय है। इसका उद्देश्य था सभी नागरिकों को डिजिटल रूप से साक्षर बनाना। परिणाम यह रहा कि एक 105 वर्षीय बुज़ुर्ग भी इस पहल के माध्यम से डिजिटल साक्षर बने।

मेरे एक 82 वर्षीय परिचित ने इस पर एक अनोखी टिप्पणी की—

“मैं कृत्रिम बुद्धिमत्ता (ए.आई.) शब्द से असहमत हूं। यह मूलतः मानव बुद्धि का ही उपोत्पाद है, अन्यथा इसकी खोज ही कैसे संभव होती? मेरा सुझाव है कि इसे ‘प्रबंधित बुद्धिमत्ता’ कहा जाए।”

लेखक

विजय मारू
विजय मारू

लेखक नेवर से रिटायर्ड मिशन के प्रणेता है। इस ध्येय के बाबत वो इस वेबसाइट का भी संचालन करते है और उनके फेसबुक ग्रुप नेवर से रिटायर्ड फोरम के आज कई हज़ार सदस्य बन चुके है।

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