लंबे और खुशहाल जीवन का राज है आपका सकारात्मक होना। हर परिस्थिति में हम अपने विचारों को ऐसी दिशा देने कि कोशिश करे कि सब अच्छा ही होगा। भगवान पर भरोसा करे कि उन्होंने हमारे लिए यही रास्ता निश्चित किया है। एक महान संत के प्रवचन की यह बात मेरे दिल में बैठ गई – उन्होंने कहां कि किसी भी घटना के दो ही कारण हो सकते हैं, ‘प्रभु कृपा’ या ‘प्रभु इच्छा’। अगर वो कार्य आपकी सोच के अनुसार हुआ हो तो ‘हरी कृपा’ अन्यथा ‘हरी इच्छा’। इस दृष्टिकोण से आप अपनी किसी भी परिस्थिति को देखें तो आपका जीवन बहुत ही सुखमय रहेगा।
अनेक शोधकर्ताओं ने यह पाया है कि सकारात्मक विचार रखने वाले व्यक्ति अच्छा स्वास्थ व लंबा जीवन पाते हैं। हमारे बीच भी कई ऐसे व्यक्ति मिल जाएंगे, वो खुद भी खुश रहते हैं और दूसरो को भी खुश रखते हैं। ऐसे व्यक्ति दूसरो की गलतियों को नजरअंदाज करेंगे और उनकी हर अच्छाई की तारीफ व उन्हें प्रोत्साहित करेंगे।
सकारात्मक दृष्टिकोण कैसे किसी के जीवन में परिवर्तन ला देता हैं इसकी एक कहानी कुछ दिनों पहले ही वाट्सएप पर मिली।
कहानी यूं है कि एक लेखक अपनी बैठक में कुछ लिखने लगे। वह लिखते हैं कि पिछले वर्ष उनकी सर्जरी हुई और डाक्टर को उनका गॉलब्लैडर निकालना पड़ा जिसके कारण वह काफी दिनों तक बिस्तर पर रहे। इसी वर्ष वह 60 वर्ष के हुए और उन्हें रिटायर होना पड़ा, उस कंपनी से जिसे वह बहुत प्यार करते थे और जहां वह 35 वर्ष तक उन्होंने सेवाएं दी थी। आगे वह लिखते है कि इसी वर्ष उनकी वृद्ध माताजी का स्वर्गवास हुआ। उनका बेटा एक कार एक्सीडेंट में जख्मी हुआ और वह अपनी मेडिकल की फाइनल परीक्षा में उत्तीर्ण न हो सका। एक्सीडेंट हुई गाड़ी को बनवाने में भी बहुत पैसे खर्च हो गए और अंत में वह लिखते हैं कि मेरा पिछला वर्ष बहुत ही बुरा गया।
यह सब विचार जब मन में आए तो वो स्वाभाविक ही बहुत दुखी और डिप्रेस्ड सा नजर आ रहे थे। लेखक की पत्नी ने जब उनकी यह हालत देखी और उसकी नजर जब उस पत्रक पर गई जिस पर यह सब लिखा हुआ था तो उसने चुपके से उनकी पूरी लेखनी को पढ़ीं।
बात उसे समझ आ गई। वो बाहर गई और एक अलग पत्रक लिखकर लाई। सारी स्थिति को वह बिल्कुल सकारात्मक रूप से लिखी।
लेखक की पत्नी ने लिखा कि पिछले वर्ष मेरे पति ने अपनी गॉलब्लैडर की बीमारी से छुटकारा पाया जिससे कि वर्षों से वह पेट की पीड़ा से दुखी थे। इसी वर्ष मेरे पति ने रिटायरमेंट लिया अच्छी सेहत के साथ। मै ईश्वर को धन्यवाद देना चाहती हूं कि मेरे पति को 35 वर्षों तक उस कंपनी में काम करने का मौका मिला। अब मेरे पति को लिखने के लिए ज्यादा समय मिल रहा है, जो की उनकी हॉबी थी। इसी वर्ष मेरी 95 वर्ष की सास भगवान को प्यारी हुई, बगैर किसी तकलीफ के। इसी वर्ष एक सड़क दुर्घटना में मेरे बेटे की जान बची, हालांकि गाड़ी को काफी नुकसान हुआ। अंतिम वाक्य में उसने लिखा कि पिछले वर्ष हमें भगवान की असीम कृपा मिली जिसके लिए हम उनको धन्यवाद देते हैं।
इसको पढ़ कर लेखक की आंखों में आंसू आ गए और वह खुद सोचने लगे की केवल सकारात्मक दृष्टिकोण से ही जीवन कितना बदला जा सकता है।
यह बोलना तो बहुत आसान है कि आप हमेशा अपने मन में केवल सकारात्मक विचार लाए, पर हम इसकी कोशिश करते रहें तो काफी हद तक सफल भी होंगे। एक बात का विशेष ध्यान रखे की हमें ऐसे ही लोगो से ज्यादा बातचीत करनी है जो खुद भी सकारात्मक हो। अगर निराशावादी लोग ज्यादा आसपास रहेंगे तो हमारे में सकारात्मक भाव रहना कठिन हो जाएगा। कुछ महापुरुषों का यह भी मानना है कि योग एवं ध्यान लगाने से भी हमारे मन में सकारात्मक भाव उत्पन्न होते हैं। समाज सेवा में भी अपना समय लगाना चाहिए। दूसरो की सेवा करने से आप खूद अपनी ही सेवा कर रहे हैं। आप को अंदर से जो खुशी मिलती है सेवा करने से वो आपके अंदर सकारात्मक भाव लाती है और आपके स्वास्थ्य को ठीक रखती है।
यह भी कहा जाता हैं कि सकारात्मक सोच से व्यक्ति किसी विपरीत स्थिति से भी जल्द निकल आता है और तनाव में भी कम रहता है।
हम अपने आसपास परिवार में या परिचित के बीच नजर दौड़ाएं तो यहीं पाएंगे कि वो व्यक्ति जो हर समय खुश रहते हैं, आपस में मेलजोल ज्यादा रखते हैं और सकारात्मक रहते है, वो निश्चित सेहतमंद रहते हैं। हमें दूसरो के विषय में नहीं सोचना हैं, हमें अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना है और उसके लिए सकारात्मक होना अतिआवश्यक हैं।
एक गुलाब की डाली को भी दो नजरियों से देखा जा सकता है – एक तो यह कि इसमें कितने कांटे हैं और दूसरे इसमें कितने सुंदर और खुशबूदार फूल है।
लेखक
लेखक नेवर से रिटायर्ड मिशन के प्रणेता है। इस ध्येय के बाबत वो इस वेबसाइट का भी संचालन करते है और उनके फेसबुक ग्रुप नेवर से रिटायर्ड फोरम के आज कोई सोलह सौ सदस्य बन चुके
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