स्वस्थ रहने के लिए अपने आप को इतना व्यस्त रखने की कोशिश करे कि ‘कुछ न करने’ का समय ही न मिले।
सुबह सुबह एक परिचित ने फोन किया। रिटायर्ड व्यक्तियो पर केंद्रित मेरे लेखो पर चर्चा करने लगे। वो अभी पचास वर्ष से कुछ ज्यादा के ही होंगे, पर मूल रूप से वरिष्ठ जन पर आधारित मेरे लेख अवश्य पढ़ते है। बोलते है कि कुछ ही वर्षो में वो भी वरिष्ठ व्यक्तियों की श्रेणी में आ ही जायेंगे।
फोन करने का कारण पूछा तो बोले कि उनके माता-पिता, जो कि पचहत्तर से ज्यादा उम्र के है, अपनी जिंदगी को सकारात्मक एजिंग की ओर न ले जाकर ज्यादातर समय व्यर्थ ही गंवाते है। और जब कुछ ठोस कार्य नहीं होता है तो नकारात्मक विचार आते है, जिसका स्वास्थ्य पर भी असर होता है।
स्वस्थ रहने के लिए अपने आप को इतना व्यस्त रखने की कोशिश करे कि ‘कुछ न करने’ का समय ही न मिले। आप कहेंगे यह सब ज्ञान देना बहुत आसान है, प्रेक्टिकल में यह इतना सरल नहीं है। यह तो एक मनोवृति बन जाती है जिससे दूर जाना मुश्किल है।
आपको अपनी रुचि के अनुसार अपना कार्य ढूंढ कर इस पर अपना पूरा ध्यान केंद्रित करना होगा।
एक दिन एक सत्तर वर्ष के व्यक्ति के मन में आया कि वो हारमोनियम सीखेंगे और साथ में अपने जमाने के गाने गाना सीखेंगे। उन्होंने अपने जीवनसाथी से इस विषय पर चर्चा की। पहले तो उन्होंने उसे मजाक समझ कर टाल दिया, पर जब उन्होंने अपने पति की दृढ़ता देखी तो उन्होंने भी भरपूर सहयोग देने का आश्वासन दिया। इस उम्र में आकर उन्होंने एक टीचर रखा और रियाज करने में समय लगाने लगे। वक्त निकलता गया और करीब दो वर्ष में इतने निपुण हो गए कि उनको साथियो व परिवार के बीच में अपनी कला दिखाने का मौका मिलने लगा। उनको अंदर ही अंदर संतुष्टी मिलने लगी, स्वस्थ और प्रसन्न रहने लगे। वो भी खुश और परिवार वाले भी खुश।
आपके घर में अगर छोटा-मोटा बागीचा हो या कुछ गमले ही हो तो लग जाइये बागवानी करने को। और ऐसी बागवानी किजिए की सभी आपकी तारीफ करने लगे। अपने मोबाइल पर गुगल महाराज के पास जाकर पौधों की इतनी जानकारी लिजिए कि आपके आसपास जो भी रहते है, उन्हें आप अपने ज्ञान से मंत्रमुग्ध कर दे। आपको बहुत संतुष्टी मिलेगी, यह निश्चित है।
एक और उदाहरण के विषय में बात करते है। एक व्यक्ति इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर करीब 35 वर्ष तक कार्य करने के बाद रिटायर हुए। रिटायरमेंट के कुछ वर्ष बाद ही उनके मन में आया कि वे अपने ज्ञान व अनुभव को व्यर्थ नहीं जाने देंगे। उन्होंन ठान लिया कि वो समाज के गरीब युवा वर्ग को स्किल सिखाने में अपना समय लगायेंगे। उन युवाओं को इस लायक बनाना कि वो अपने परिवार का पालन-पोषण करने लगे, यहीं उन्होंने अपना ध्येय बनाया।
कुछ समय पहले मैने ऐसा ही एक समाचार रांची के किसी अखबार में पढ़ा था। कोल इंडिया से रिटायरमेंट के बाद पांच-छह इंजीनियर्स ने गरीब बच्चो के लिए, जो कि आई आई टी में दाखिला लेने के इच्छुक थे, कोचिंग क्लास शुरु कर दी।
मैने तो कुछ ही उदाहरण दिए हैं। आप सभी इतने अनुभवी है, कि आप खुद ही कुछ न कुछ कार्य अपने लिए ढूंढ लेंगे। बस मन मे ठान लिजिए कि हमें स्वस्थ्य रहना है, किसी पर बोझ नहीं बनना है, और जरूरतमंद की सहायता करनी है।
जरा सोचिए कि आप अगर अपने आप को व्यस्त रखेंगे तो आपके स्वास्थ्य पर इसका कितना सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। परिवार के अन्य लोग को भी यह बहुत अच्छा लगेगा। समाज आपको आदरपूर्वक नजरो से देखेगा। अन्य रिटायर्ड व्यक्ति आपके कार्य से प्रभावित होकर कुछ अपना शुरु करने के लिए प्रोत्साहित हो सकते है।
इस उम्र में आकर हमें यही ध्यान रखना है कि हम खो जाए अपनी जिन्दगी में। हम मौत का इन्तजार न करे। व्यर्थ में यह नहीं विचार करे कि कौन-कौन हमसे मिलने आते है। हम तो यह निश्चय करे कि हमे जिनसे प्यार मिलता है उनसे हम बार-बार मिले।
अभी तो हमे वर्षो अपने अनुभव को साझा करना है, खुद स्वस्थ रहना है, और उसको दूसरो के लिए उपयोगी बनाना है।
लेखक
लेखक नेवर से रिटायर्ड मिशन के प्रणेता है। इस ध्येय के बाबत वो इस वेबसाइट का भी संचालन करते है और उनके फेसबुक ग्रुप नेवर से रिटायर्ड फोरम के आज कोई सोलह सौ सदस्य बन चुके है।
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