चिट्ठी लिखना बहुत याद आता है

चिट्ठी लिखना बहुत याद आता है

हम बुजुर्गो को याद होगा कि कैसे हम पत्र, खत या कहें तो चिट्ठी लिखते थे। कैसे पोस्टमैन की राह देखते थे कि अपने नाम कोई पत्र आया है क्या। फोन की सुविधा अधिक न होने के कारण पत्रो का आदान-प्रदान ही संदेश भेजने का साधन होता था। फिर चाहे वह परिवार की खुशहाली का हो या कोई दुःखद समाचार देना हो, कोई प्रेम पत्र हो या व्यापारिक कारोबारी संबधित – सभी के लिए पत्र ही लिखा जाता था।

पहले कि फिल्मों में अक्सर ऐसे दृश्य होते थे जहां चिट्ठी लिखते हुये या पोस्टमैन को इन्हें बांटते हुए दिखाया जाता था। फिल्मी गाने तो अनेक है चिट्ठीयों पर। याद करे तो कितने ही गाने हर जबान पर रहते थे और आज भी अंताछरी के खेल में गाये जाते है।

ये कुछ गाने बहुत प्रचलित हुए थे – कन्यादान फिल्म का एक बहुत ही मशहूर गीत था “लिखे जो खत तुझे जो तेरी याद में …”, फिल्म शक्ति का “हमने सनम को खत लिखा, खत में लिखा…”, सरस्वतीचंद्र फिल्म का एक गीत “फूल तुम्हें भेजा है खत में…” तो बहुत ही प्रचलित हुआ और आज भी यह सुनने को मिल जाता है। एक फ़िल्म थी जीना तेरे गली में, उसका गीत “जाते हो परदेस पिया, जाते ही खत लिखना…”। आज तो हर पल की खबर मोबाइल पर दी जाती है। एक अन्य बहुत ही प्रचलित गीत था फिल्म आए दिन बहार के में। इसके शब्द थे “खत लिख दे सांवरिया के नाम बाबू…।” याद करे तो कितने ही गीत ध्यान आ जायेंगे और वो दृश्य भी आंखो के सामने आ जायेंगे।

चिट्ठी लिखना एक कला है। शब्दों का चयन और फिर उन्हें सुंदर अक्षरो में सजा कर लिखना आसान नही होता है। इन पत्रो को लिखने के लिए तो स्पेशल पेन और स्पेशल लेटरपेड तक मिलते थे और आज भी जरूर मिलते होंगे। जिनकी हेंडराइटिंग अच्छी होती थी उनका खूब मान-सम्मान होता था। यह प्रथा आज भी कई स्कूलों में है।

आज के बच्चों को शायद हाथ से लिखी हुई चिट्ठी भेजना एक अजीब सी बात लगेगी। ईमेल या वाट्सएप के युग में चिट्ठी कौन लिखे। हां, कुछ परिवारो में किसी महापुरुष के द्वारा लिखा पत्र हो तो वो सहेज कर रखते है और कई तो इन्हें फ्रेम कर रखते महै। वर्षो बाद तो आज के बच्चो को हस्तलिखित चिट्ठीयां पेन्टिगं आर्ट ही लगेगी।

याद आते है वो दिन, जब देखते थे कि कोई व्यक्ति तो किसी की चिट्ठी पढ़कर इतने भावुक हो जाते थे कि पत्र पढ़ते पढ़ते उनकी आखों से आंसु बहना रुकता ही नहीं था। प्रेम पत्रो की अलग ही कहानी होती थी। उन्हे छिपा कर भेजना, भगवान से प्रार्थना करना की गलत व्यक्ति के हाथ न लग जाए और फिर उन्हे छिपा कर रखना। ऐसे प्रेम पत्र, बाजार में मिल रहे अच्छे लेटरपेड पर सुन्दर लिखावट से लिखे जाते थे या लिखवाये जाते थे। 1964 में आई फिल्म संगम में प्रेम पत्र पर एक गीत सुपरहिट हुआ था, जिसके बोल थे “यह मेरा प्रेम पत्र पढ़कर तुम नाराज ना होना, मेहरबान लिखूं, हसीना लिखूं या दिलरुबा लिखूं…।”

आज भले हम पोस्टमैन या पोस्ट ऑफिस को ज्यादा महत्व न देते हो पर वर्षो पहले तो इनकी अहमियत को हर कोई जानता था। आज हमारे आसपास बहुत से युवा मिल जायेंगे जो कभी पोस्ट ऑफिस गए ही न हो। बहुत कम युवा को पता होगा कि संदेश भेजने के लिए पोस्ट कार्ड, अंतर्देशीय पत्र या फिर लिफाफे के अंदर कागज पर लिख कर भेज सकते है। हां, कूरियर सेवा शुरू होने से इनका प्रचलन कम हो गया हैं, पर बंद नही हुआ है।

पत्र लिखने की कला आज के युवा को भी सिखाई जानी चाहिए। कोई जरूरी नहीं की कागज में लिखकर पोस्ट ही करना हो। ईमेल से भी संदेश भेजना हो तो सही शब्दो के चयन और उन्हें सही वाक्यो में पिरो के भेजने का लाभ बहुत है। हम बुजुर्ग व्यक्तियों को तो पोस्टमैन को देखते ही या किसी पोस्ट ऑफिस के सामने से निकलते ही वो पुरानी यादे सामने आ जाती है।

लेखक

विजय मारू
विजय मारू

लेखक नेवर से रिटायर्ड मिशन के प्रणेता है। इस ध्येय के बाबत वो इस वेबसाइट का भी संचालन करते है और उनके फेसबुक ग्रुप नेवर से रिटायर्ड फोरम के आज कोई सोलह सौ सदस्य बन चुके है।

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