हमारे बहुत से भारतीय जो अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया या अन्य देश में बस गए हैं वह वापस आना चाहते हैं, खास करके वरिष्ठ नागरिक। उनको अभी भी अपनी मिट्टी से बहुत प्यार है और वह यहां का वातावरण भूल नहीं पा रहे हैं। वहां जाकर करोड़ों रुपया जरूर कमाए हैं, फिर भी इस माटी की खुशबू उन्हें वापस आने को मजबूर कर रही है।
अभी-अभी इलेक्शन समाप्त हुए हैं और नई सरकार भी आ गई है। मोदी जी पुनः तीसरी बार प्रधानमंत्री का पद भार संभाला हैं।
इलेक्शन के प्रचार के समय एक सवाल बार-बार पूछा जाता था कि पिछले 10 वर्ष में मोदी जी ने किया क्या है। बहुत सी उपलब्धियां बताई जाती थी जिसमें ज्यादातर इंफ्रास्ट्रक्चर के विषय में होती थी। और भी बातें बताई जाती थी पर एक बात जो सामने डायरेक्टली नहीं आती थी वह है कि इन सब का हमारे एनआरआई, हमारे खुद के लोग जो विदेश में जाकर बस गए थे, उन पर क्या असर कर रही है।
एक रिपोर्ट के अनुसार हमारे बहुत से भारतीय जो अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया या अन्य देश में बस गए हैं वह वापस आना चाहते हैं, खास करके वरिष्ठ नागरिक। उनको अभी भी अपनी मिट्टी से बहुत प्यार है और वह यहां का वातावरण भूल नहीं पा रहे हैं। वहां जाकर करोड़ों रुपया जरूर कमाए हैं, फिर भी इस माटी की खुशबू उन्हें वापस आने को मजबूर कर रही है।
भारत में जो पारिवारिक वातावरण उनको मिलता था वह दुनिया में कहीं नहीं मिलता। यह पारिवारिक वातावरण केवल परिवार से नहीं बल्कि इष्ट मित्रों से भी मिलता था। यहां पर परिवार तो छोड़िए, जो मित्र एक बार आपका अपना बन जाता है वह कोई परिवार के सदस्य से कम नहीं होता है। आपके सुख-दुख में उसका उतना ही योगदान होता है जितना कि खुद के सगे भाई बहन से होता हो।
एक और दृष्टिकोण, जिस पर विशेष ध्यान देना पड़ता है, वह है आर्थिक पक्ष। हमने कितना ही धन अर्जित किया हो और कितनी ही सम्पत्ति जमा कर ली हो पर बुढ़ापे में भय लगा रहता है कि बीमारी में क्या पता कितना खर्च आ जाए। इस कारण थोड़ी बचत ही ठीक है। मरना कोई चाहता नहीं और साथ कुछ ले नहीं जा सकते, पर जीवन की यही सच्चाई है।
इस लिए, चाहे वह सामाजिक कारण हो या आर्थिक कारण हो या दोनो का मिला-जुला असर हो, कौन यहां वापस नहीं आना चाहेगा। हां, कुछ बुनियादी सहुलियतो पर हमें ध्यान जरूर देना होगा।
- विदेश का वातावरण साफ-सफाई की दृष्टि से, या हवा में पॉल्यूशन या पानी की क्वॉलिटी की दृष्टि से, भारत से उत्तम है। हमारे यहां कोई विदेश से मेहमान आता है तो इन सब विषय पर जरूर अपनी नाराजगी दिखते है। और यह सही भी है, क्योंकि इसका डायरेक्ट असर हमारी पर्सनल हेल्थ पर पड़ता है। रिटायरमेंट के बाद तो इस पर ध्यान देना और भी जरूरी है।
- छोटी-छोटी दैनिक जरूरते होती है जिसका कि डायरेक्ट रिलेशन एडमिनिस्ट्रेटिव लोगों के साथ है। बिजली विभाग, म्यूनिसिपल विभाग, वगैरह। अपने यहां जो सिस्टम हैं उससे वो लोग कम्फर्टेबल नहीं होते है।
- कुछ लोग यहां के ओल्ड ऐज होम में भी रहना पसंद करते है। आजकल अच्छी सुविधाजनक, ऐसे रहने के स्थान उपलब्घ है।
- सबसे जरूरी आवश्यकता होती है डॉक्टर व हॉस्पिटल की। सभी व्यस्क व्यक्ति के लिए तो इसके बगैर काम ही नहीं चल सकता। इसकी यहां सहुलियत अच्छी है। विदेश में न केवल ईलाज बहुत खर्चीला हैं, डाक्टर से एपाॅन्टमैन्ट तक लेने में बहुत समय लग जाता है।
- एक और चीज की जो आवश्यकता होती है वह है वरिष्ठ जनों को एक उम्र के बाद साथी की, जो उनको समय देकर उनसे बात कर सके। यह साथी यहां कुछ आसानी से मिल जाते है।
विदेश जाने का ट्रेंड सत्तर-अस्सी के दशक में जोरो पर था। कोई पच्चीस-तीस वर्ष के वो भारतीय आज बुजुर्ग की श्रेणी में आ चुके है। घर की याद, जहां उन्होने अपना बचपन बिताया, पढ़ाई की, यह सब कैसे भूल सकते है। उनका भारत की इस पावन भूमि में स्वागत है।
लेखक
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उत्तम लेख।
वरिष्ठ नागरिकों की जरूरतो का ध्यान रखने के लिए एक अलग मंत्रालय बनाने की जरूरत है। ताकि उनकी अवशक्ता अनुरूप पालिसी बनाई जाए। उदाहरण के लिए 80 वर्ष से ऊपर के व्यक्ति के लिए मेडिकल पालसी नही मिलती जबकि इसी उम्र में बीमारी सबसे ज्यादा परेशान करती है। ऐसी अनेक बाते है जिन पर ध्यान दिया जाना जरूरी है ताकि अंत समय तक सम्मान और सुरक्षा से जीवन बिताया जा सके।
लेख एकदम सम्यक है और जीवन की सचाई दर्शाता है