बुढ़ापा सभी को एक आम इंसान बना देता है

Ageing Turns Everyone Into an Ordinary Person

आप एक बहुराष्ट्रीय कंपनी के सीईओ रहे हों, या एक प्रसिद्ध चिकित्सक जिनसे अपॉइंटमेंट लेना किसी जंग जीतने से कम नहीं होता था, या फिर किसी देश के प्रमुख पद पर रहे हों — आपके जीवन के स्वर्णिम दिनों में आपका सम्मान, प्रभाव और पहचान सर्वोच्च रही होगी। परंतु जैसे-जैसे उम्र ढलती है, समय और बुढ़ापा धीरे-धीरे सबको साधारण बना देता है।

आपने चाहे कितनी भी डिग्रियाँ ली हों, कितने भी पुरस्कार जीते हों, कितने ही बड़े मंचों से भाषण दिए हों — पर बुढ़ापे की दहलीज़ पर कदम रखते ही वह सब पीछे छूट जाता है। यह उम्र वह पड़ाव है जहां सब कुछ एक समान हो जाता है। यहां तक कि जो कभी शिक्षा से वंचित रहा, वह भी आज आपकी ही तरह एक समान ज़िंदगी जी रहा है।

जिन अधीनस्थों को आप आदेश देते थे, वे तो आपकी सेवा-निवृत्ति के साथ ही चले गए। अब आपके मिलने के लिए कोई प्रतीक्षा नहीं करता। कोई खास कार्यक्रम या मीटिंग नहीं होती। पहले जो व्यस्तता और भागदौड़ थी, वह अब एक शांत जीवन में बदल चुकी है।

लेकिन यह बदलाव अनोखा नहीं है, और इससे डरने की कोई आवश्यकता नहीं है। यह जीवन की सामान्य प्रक्रिया है, जिससे हर व्यक्ति को होकर गुजरना होता है।

हमें धीरे-धीरे इस नई स्थिति से सामंजस्य बैठाना सीखना होगा। अकेले रहना भी एक कला है, जिसे हमें सीखना होता है। हमारे बुजुर्गों में से बहुत कम लोग हमारे साथ होंगे। और एक दिन हमारा जीवनसाथी भी हमें छोड़कर चला जाएगा। ईश्वर ने हर व्यक्ति के लिए एक निश्चित समय तय किया है जब उसे इस दुनिया से विदा लेनी है। शायद ही कभी ऐसा होता है कि पति-पत्नी एक साथ या बहुत कम अंतर में इस संसार से विदा लें।

इसलिए अपने बढ़ते वर्षों में हमें विशेष सावधानी बरतनी चाहिए हमारे रिश्ते निभाने में, चाहे वह हमारे परिवार के सदस्यों के साथ हों या देखभाल करने वाले सहायक के साथ। इस उम्र में हमें रिश्तों को समझदारी और संवेदनशीलता से निभाना होता है।

बुढ़ापा केवल शारीरिक रूप से नहीं, बल्कि सामाजिक और मानसिक स्तर पर भी बदलाव लाता है। एक समय था जब आपका कैलेंडर मीटिंग्स और यात्राओं से भरा होता था, आज वही कैलेंडर खाली रहता है। फोन की घंटी अब कम बजती है, और सामाजिक दायरा सिमटने लगता है।

परंतु यह समय हमारे अस्तित्व के लिए कोई खतरा नहीं है। यह समय है खुद को एक नए दृष्टिकोण से देखने का। अब आपकी पहचान केवल आपकी उपलब्धियों से नहीं, बल्कि उस जीवन से है जिसे आपने जिया है, जिन मूल्यों को आपने अपनाया है और जिन लोगों को आपने छुआ है।

इस जीवन के अंतिम चरण में, हम जो अकेलापन अनुभव करते हैं, उससे बचना मुश्किल है। लेकिन यदि हमने जीवनभर अच्छे संबंध बनाए हैं, तो कुछ लोग हमारे साथ रहेंगे — परिवार के सदस्य, मित्र या देखभाल करने वाले। लेकिन इनसे संबंध रखते समय सतर्कता भी ज़रूरी है। उम्र बढ़ने के साथ हमारी निर्भरता बढ़ती है, और इसी कारण हमें अपने आसपास के लोगों को समझदारी से चुनना चाहिए।

यह समय केवल सावधानी का नहीं, यह हमारे लिए नई परिस्थितियों, विचारों या परिवर्तनों के अनुकूल ढलने की क्षमता को बढ़ाने का है। हमें अपने विचारों और व्यवहार को अनिश्चितता अथवा विभिन्न व्यक्तियों के अनुसार अधिक प्रभावी करना होगा, जिससे बेहतर परिणाम दिखाई दे। आप नई चीजें सीख सकते हैं, नए शौक अपना सकते हैं, और नए रिश्ते बना सकते हैं। जीवन का यह “साधारण” दौर भी बहुत सुंदर हो सकता है — यदि हम इसे अपनाना सीखें।

इन सुनहरे वर्षों में, हमें यह याद रखना चाहिए कि हमारी पहचान किसी पद या पुरस्कार से नहीं होती, बल्कि उस शांति से होती है जो हमारे भीतर होती है, उन रिश्तों से होती है जो हम निभाते हैं, और उस अनुभव से होती है जो हम आने वाली पीढ़ियों को सौंपते हैं।

अंत में, सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हम गरिमा के साथ जिएं, बदलाव को स्वीकार करें और जीवन की इस साधारण सुंदरता को पूरी तरह महसूस करें। यह मान कर चले कि इस स्थिति में हम अकेले नहीं हैं। हम सब एक आम इंसान हैं इस पड़ाव पर पहूंच कर।

लेखक

विजय मारू
विजय मारू

लेखक नेवर से रिटायर्ड मिशन के प्रणेता है। इस ध्येय के बाबत वो इस वेबसाइट का भी संचालन करते है और उनके फेसबुक ग्रुप नेवर से रिटायर्ड फोरम के आज कई हज़ार सदस्य बन चुके है।

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