बुजुर्गों से सीखें — सतत जीवन की कला

बुजुर्गों से सीखें — सतत जीवन की कला Learning Sustainability from Elders

कल की सीख, आने वाले कल की सुरक्षा

आज के समय में जब सुविधा, उपभोग और बदलते ट्रेंड हमारी जीवनशैली पर हावी हैं, तब सतत जीवन (Sustainability) को अक्सर एक आधुनिक विचार माना जाता है। लेकिन सच यह है कि सबसे व्यावहारिक, प्रभावी और टिकाऊ जीवन की सीखें हमारे बुजुर्गों की आदतों और जीवन मूल्यों में छिपी हैं। उनके लिए “सस्टेनेबिलिटी” कोई नारा नहीं था—यह तो एक स्वाभाविक जीवन-शैली थी।

पारंपरिक सोच: एक पूर्ण और संतुलित जीवन-दृष्टि

हमारे बुजुर्ग उस दौर से आए हैं, जहां हर संसाधन की कद्र की जाती थी। बेवजह ख़र्च नहीं, बेवजह ख़रीद नहीं—उनका जीवन Reduce, Reuse, Repair के सिद्धांतों पर आधारित था। आज यही सिद्धांत पर्यावरण बचाने के लिए सबसे प्रभावी माने जाते हैं।

  1. Reduce – कम खरीदें, लेकिन समझदारी से जीएं
  2. Reuse – हर चीज़ को दूसरी जिंदगी दी जा सकती है
  3. Repair – जो टूटे उसे सुधारें, फेंकें नहीं
  4. पानी, बिजली और प्रकृति का संरक्षण
  5. दो पीढ़ियों का साथ: परंपरा और तकनीक का संगम

Reduce – कम खरीदें, लेकिन समझदारी से जीएं

पुरानी पीढ़ियां हमेशा जरूरत भर ही खरीदती थीं। न कोई फैशन का दबाव, न हर सप्ताह का शॉपिंग प्लान।
आज के युवाओं से अक्सर सुनने को मिलता है—

  • “अलमारी भरी है लेकिन फिर भी नए कपड़े ले आए।”
  • “कल मॉल गए थे, दो–तीन और चीजें खरीद लीं।”

सोशल मीडिया, ट्रेंड और पीयर प्रेशर लोगों को अनावश्यक खरीदारी की ओर धकेलते हैं, जिसका पर्यावरण पर गहरा असर पड़ता है।

पहले खरीदारी त्योहारों पर या किसी बड़े अवसर पर होती थी। आज तो मूड आया और शॉपिंग शुरू—घर बैठे ऑनलाइन, या मॉल में जाकर।

बुजुर्ग हमें याद दिलाते हैं कि समझदारी से खरीदना भी एक पर्यावरणीय जिम्मेदारी है।

Reuse – हर चीज़ को दूसरी जिंदगी दी जा सकती है

हम सबको वो दिन याद हैं—

  • बड़े भाई–बहनों के कपड़े छोटे पहनते थे
  • किताबें घर या पड़ोस के बच्चों को दे दी जाती थीं
  • सालों तक एक ही पाठ्यपुस्तक चलती थीदो पीढ़ियों का साथ: परंपरा और तकनीक का संगम आज अक्सर सिलेबस बदल जाता है, और नई किताबें खरीदनी पड़ती हैं।

लेकिन बुज़ुर्ग बताते हैं कि यदि हम चाहें तो हर वस्तु को दोबारा उपयोग में लाया जा सकता है।

Repair – जो टूटे उसे सुधारें, फेंकें नहीं

  • पहले कोई चीज़ खराब हुई तो उसे ठीक किया जाता था— चाहे आयरन हो, टोस्टर हो, फर्नीचर हो या कपड़े।
  • आजकल छोटी सी खराबी पर लोग नई चीज ले आते हैं। मैकेनिक और दर्जी भी कम होते जा रहे हैं।
  • बुजुर्गों की मरम्मत की कला और “सहेज कर उपयोग” की आदतें आज बेहद जरूरी हैं।
  • सुई–धागा चलाना या बटन टांकना—ये कौशल कई युवाओं को आज आते ही नहीं।

पानी, बिजली और प्रकृति का संरक्षण

आज भी बड़े-बुजुर्ग अनचाही लाइटें, पंखे और नल बंद कर देते हैं। कुछ युवा कहते हैं कि वे सिर्फ पैसे बचाने के लिए ऐसा करते हैं। पर क्या पैसे बचाना गलत है? और सबसे बढ़कर—ऊर्जा और पानी जैसी दुर्लभ संसाधनों का संरक्षण हो रहा है। उनके जीवन में ऐसे दिन थे—

  • जब पानी कुछ घंटों के लिए ही मिलता था
  • जब बिजली कभी भी चली जाती थी
  • जब हर संसाधन को बचाना रोजमर्रा की आदत थी

उनका अनुभव उन्हें याद दिलाता है कि संसाधन सीमित हैं और उनका सावधानी से उपयोग ही भविष्य को सुरक्षित रख सकता है। वे हमें सिखाते हैं—

  • हर सामग्री का पूर्ण उपयोग
  • किचन वेस्ट से कम्पोस्ट बनाना
  • मौसमी सब्जी–फलों को उगाना
  • घर–आंगन में आने वाले पक्षियों और गिलहरियों को खाद्य देना

मैं स्वयं एक बुजुर्ग महिला को जानता हूं जो रोज सब्जियों और फलों के छिलके खिड़की पर रख देती हैं, और चिड़ियां, तोते और गिलहरियां उसे जल्दी ही खा जाती हैं। इससे कचरा भी कम होता है और जीव–जंतुओं का भोजन भी हो जाता है।

दो पीढ़ियों का साथ: परंपरा और तकनीक का संगम

सच्ची सततता तभी आती है जब बड़ी और युवा पीढ़ी एक साथ काम करें।

  • बुज़ुर्ग सिखा सकते हैं—
    • संसाधन बचत, मरम्मत कौशल, कम्पोस्टिंग, और जिम्मेदार उपयोग की आदतें
  • युवा सिखा सकते हैं—
    • ऊर्जा–कुशल उपकरण, स्मार्ट होम टेक्नोलॉजी और पर्यावरण–अनुकूल नवाचार।

पुरानी समझ और नई तकनीक मिलकर ही एक बेहतर और टिकाऊ भविष्य बनाते हैं।

बुजुर्ग: सततता के शांत और सच्चे अग्रदूत

हमारे बुज़ुर्ग दशकों का अनुभव अपने भीतर समेटे होते हैं—परखा हुआ, मूल्यवान, और आज के पर्यावरणीय संकटों में अत्यंत उपयोगी। उनकी सोच प्रकृति से जुड़ी है और भविष्य की पीढ़ियों के हित से प्रेरित है। यदि हम उनकी बात सुनें, उनकी आदतें अपनाएं और उनके मार्गदर्शन को सम्मान दें, तो हम एक ऐसा भविष्य बना सकते हैं जो पर्यावरण के प्रति संवेदनशील, संतुलित और स्थायी हो।

लेखक

विजय मारू
विजय मारू

लेखक नेवर से रिटायर्ड मिशन के प्रणेता है। इस ध्येय के बाबत वो इस वेबसाइट का भी संचालन करते है और उनके फेसबुक ग्रुप नेवर से रिटायर्ड फोरम के आज कई हज़ार सदस्य बन चुके है।

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