आज अगर हम अपने आस-पास नजर डालें तो पाएंगे कि वित्तीय समस्याएं ही बहुत से वरिष्ठ नागरिकों को अस्वस्थ बना रही हैं। तो क्यों न हम यह निश्चित करें कि हमें स्वस्थ रहना ही है? आजकल मेडिकल सुविधाएं बहुत महंगी हो गई हैं। किसी भी बीमारी के लिए डॉक्टर से सलाह लेने में ही हजारों रुपये खर्च हो जाते है। फिर, वर्तमान चिकित्सा पद्धति में डॉक्टर बिना महंगे टेस्टों के किसी नतीजे पर नहीं पहुंचते। यही नहीं, एक बीमारी के लिए आपको कई विशेषज्ञ डॉक्टरों के पास जाना पड़ता है, जिससे खर्च बढ़ता ही जाता हैं। अधिकतर मेडिकल इंश्योरेंस तभी काम आता है जब आप अस्पताल में भर्ती होते हैं।
इन पहलुओं पर और भी बहुत कुछ चर्चा की जा सकती है, लेकिन मुख्य बात यही है कि हमें अपनी सेहत का ध्यान रखना चाहिए और जितना संभव हो डॉक्टर या अस्पताल जाने से बचना चाहिए। बढ़ती उम्र में मानसिक दुर्बलता से ऊपर उठना जरूरी है। छोटी-छोटी परेशानियों के लिए घरेलू उपचार काफी कारगर साबित हो सकते हैं और इससे पैसे की भी बचत होती है। आज के बच्चों को इन घरेलू नुस्खों की न तो जानकारी है और न ही वे इन पर विश्वास करते हैं।
हम अपने युवा समय में फिक्स्ड डिपॉजिट या अन्य निवेश करते हैं, यह सोचकर कि बुढ़ापे में ये पैसे हमारे जीवन को आराम से चलाने में मदद करेंगे। ठीक इसी प्रकार, युवा अवस्था में ऐसी जीवनशैली अपनानी चाहिए, जिससे आगे चलकर हमें बीमारी कम हो। इन विचारों को आज के युवा को समझना होगा। ऐसा न हो कि आज के युवा जब बुजुर्ग हो तब अफसोस करे।
आज हमें किडनी या हार्ट से संबंधित या और कोई स्वास्थ्य की समस्या होती है, तो यह निश्चित है कि वर्षों पहले इन बिमारियों का बीजारोपण शरीर में हो गया था जिससे शरीर उस बीमारी से लड़ने की क्षमता खो चुका। ज्यादातर समस्याएं गलत खानपान से उत्पन्न होती हैं। कौन नहीं जानता कि तंबाकू का सेवन हानिकारक होता है और इसका असर हार्ट पर पड़ता है। हम इसे नजरअंदाज करते रहते हैं और जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, हार्ट की समस्या सामने आ जाती है। हां, कुछ बीमारियां आनुवंशिक होती हैं और जन्मजात होती हैं।
आजकल के बच्चे घर का खाना पसंद नहीं करते। वे या तो बाहर रेस्टोरेंट में खाना पसंद करते हैं या फिर ‘जोमेटो’ और ‘स्विगी’ या अन्य साधनो से, किसी होटल का पकवान डिलीवरी करवाते हैं। किसी भी डॉक्टर या आयुर्वेदिक परामर्शदाता से मिलिए, सभी का यही कहना है कि बाहर का खाना कम से कम खाएं। हाल ही में एक अखबार में पढ़ा कि कचोरी और समोसे का काला तेल कैंसर और हार्ट अटैक का कारण बन रहा है। कई लोग कहते हैं कि मैदा के उत्पाद से बचना चाहिए, लेकिन आजकल फास्ट फूड में तो मैदा का प्रयोग बहुत ज्यादा होता है।
हम वरिष्ठ नागरिकों का यह कर्तव्य है कि हम अपने घर में बच्चों को यह समझाएं कि वे भी एक दिन बड़े होंगे। अगर वे आज से अपनी आदतों को सही बनाएंगे तो भविष्य में उनकी सेहत बेहतर रहेगी और वे डॉक्टरों और अस्पतालों के चक्कर कम लगाकर बहुत पैसे बचा सकेंगे। उन्हें जितना कम मेडिकल खर्च होगा, उनका बैंक बैलेंस उतना ही सुरक्षित रहेगा। आजकल के युवा वर्ग की तो यह स्थिति है कि वे मेडिकल खर्चों से बचने के लिए संतान पैदा करने में भी हिचकिचाते हैं।
हर कोई भगवान से यह प्रार्थना करता है कि उसके अंतिम दिनों में कम से कम तकलीफ हो। हम सभी को एक दिन जाना है, लेकिन अगर हम चलते-फिरते भगवान को प्यारे हो जाएं, तो इससे ज्यादा खुशकिस्मती और क्या हो सकती है? हम अपने आस-पास कई लोगों को देख सकते हैं, जो महीनों बीमारी से बिस्तर पर पड़े रहते हैं और फिर कभी उठ नहीं पाते। लाखों रुपये खर्च हो जाते हैं, ज़मीन-जायदाद तक बिक जाती है इन अंतिम दिनों के इलाज पर। इसलिए यह धारणा बिल्कुल सही है कि अगर आप बुढ़ापे में स्वस्थ हैं, तो आप वास्तव में कमाई ही कर रहे हैं।
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