फुटपाथ केवल पत्थर या कंक्रीट की पटरियां भर नहीं हैं। यह वास्तव में स्वास्थ्य, आत्मनिर्भरता और गरिमा के मार्ग हैं। विशेषकर वरिष्ठ नागरिकों के लिए ये तय करते हैं कि वे सक्रिय जीवन जिएंगे या घर की चारदीवारी तक सीमित रह जाएंगे। यदि हमारे शहरों में सुरक्षित, स्वच्छ, रोशनी से युक्त और बीच-बीच में विश्राम के लिए बेंच लगे अच्छे फुटपाथ हों, तो नागरिकों का—विशेष रूप से बुजुर्गों का—स्वास्थ्य काफी हद तक सुधर सकता है। उनके जीवन के सुनहरे वर्ष और अधिक सुरक्षित, गरिमामय और सुखद बन सकते हैं। वास्तव में हमें बुढ़ापे और शहरी ढांचे को देखने का दृष्टिकोण ही बदलना होगा।
हाल ही में मैंने सिंगापुर पर एक रिपोर्ट पढ़ी। वहां सरकार ने बुजुर्गों को पैदल चलने के लिए प्रोत्साहित करने के कई उपाय किए। नतीजे बेहद सकारात्मक रहे। आज सिंगापुर का औसत नागरिक रोजाना 10,000 से भी अधिक कदम चलता है। यह संयोग नहीं है, बल्कि सोच-समझकर बनाई गई नीतियों और शहरी योजना का परिणाम है। इसकी तुलना भारत से करें, जहां अफसोस की बात है कि युवा भी बहुत कम चलते हैं।
डॉक्टर अक्सर कहते हैं कि “चलना सबसे अच्छा व्यायाम है।” लेकिन कई वरिष्ठजन यह मान बैठते हैं कि जब वे धीरे-धीरे चलते हैं या उनके पैर कांपते हैं, तो यह किसी गंभीर बीमारी या लकवे का लक्षण है। सच यह है कि अधिकांश मामलों में यह मांसपेशियों के क्षय (Muscle Degeneration) के कारण होता है। केवल दवाइयां इसका हल नहीं हैं। असली इलाज है—निरंतर चलना। और इसके लिए अच्छे फुटपाथ सबसे महत्वपूर्ण सहायक सिद्ध हो सकते हैं। यह सभी नागरिकों के लिए खुले में बने व्यायामशाला की तरह हैं, और विशेष रूप से उन बुजुर्गों के लिए जो महंगे जिम या स्वास्थ्य क्लब नहीं जा सकते।
जब भी हम विदेशी फिल्में देखते हैं, चौड़े, साफ़ और आकर्षक फुटपाथ मन मोह लेते हैं। लोग आराम से टहलते हैं, बच्चे खेलते हैं, बुजुर्ग गरिमा के साथ चलते हैं। ऐसे दृश्य देखकर मन में सवाल उठता है—हमारे शहर क्यों ऐसे नहीं हो सकते? वहां चलना बोझ नहीं, आनंद होता है।
भारत में भी कुछ उदाहरण प्रेरणादायी हैं। पुदुचेरी में समुद्र किनारे की मुख्य सड़क पर सुबह और शाम वाहनों का प्रवेश रोक दिया जाता है। इन घंटों में सैकड़ों लोग वहां टहलते हैं—बुजुर्ग, युवा, स्थानीय लोग और पर्यटक सभी। बिना ट्रैफिक के स्वतंत्र रूप से चलने की खुशी उनके चेहरे पर झलकती है। कुछ शहरों ने नदी तट या झील तट को भी इस उद्देश्य से विकसित किया है। लेकिन सच्चाई यह है कि अधिकांश भारतीय शहरों में ऐसे पैदल मार्गों की कमी है। कुछ इलाकों में पार्क हैं, लेकिन सब जगह नहीं। अधिकांश नागरिकों के लिए साधारण फुटपाथ ही सबसे सुलभ और व्यावहारिक विकल्प है।
डॉक्टर सुबह-शाम टहलने की सलाह देते हैं, और हमें रोज ही वॉट्सऐप पर इसके लाभों के संदेश मिलते रहते हैं। परंतु सुरक्षित जगह न हो तो यह सलाह कैसे व्यवहार में उतरे? टूटा-फूटा, अतिक्रमित या अंधेरा फुटपाथ स्वास्थ्य का साधन नहीं बल्कि खतरा बन सकता है। इसके विपरीत, यदि फुटपाथ सही ढंग से बने हों, तो बुजुर्ग न केवल व्यायाम कर सकते हैं बल्कि छोटे-छोटे कामों के लिए भी पैदल जा सकते हैं। पास की दुकान या पड़ोसी तक जाना उन्हें गाड़ी या ऑटो पर निर्भर नहीं बनाता।
लेकिन सारी जिम्मेदारी केवल सरकार की नहीं है। नागरिक सजगता भी उतनी ही ज़रूरी है। जब फुटपाथ टूटा हो, स्ट्रीट लाइट न जल रही हो या दुकानदारों ने अतिक्रमण कर रखा हो, तो कितनी बार हम आवाज़ उठाते हैं? कितनी बार हम नगरपालिका को लिखित शिकायत देते हैं? अकेले की गई शिकायत शायद असरदार न हो, लेकिन यदि रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन या हाउसिंग सोसाइटी सामूहिक रूप से पहल करे, तो प्रशासन को कदम उठाना ही पड़ता है। विडंबना यह है कि हम विश्वस्तरीय ढांचे की अपेक्षा तो करते हैं, लेकिन अपनी आदतें नहीं बदलते। यदि हमें विश्वस्तरीय सुविधाएं चाहिए, तो हमारा आचरण भी उसी स्तर का होना चाहिए।
जिस प्रकार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के स्वच्छता अभियान ने स्वच्छता के प्रति जनजागरण पैदा किया, उसी प्रकार “सुरक्षित, रोशन और सुगम फुटपाथ” के लिए एक राष्ट्रीय अभियान शुरू किया जा सकता है। प्रधानमंत्री का आह्वान न केवल नगर निगम और स्थानीय सरकारों को सक्रिय करेगा, बल्कि जनता की चेतना भी जगाएगा। यह अभियान बुजुर्गों के स्वास्थ्य और गरिमा के लिए वरदान साबित हो सकता है।
अच्छे फुटपाथ कोई विलासिता नहीं, बल्कि आवश्यकता हैं। यह सबसे सस्ता और सबसे लोकतांत्रिक स्वास्थ्य ढांचा है, जो सभी के लिए उपलब्ध है। इन पर निवेश की जरूरत है, लेकिन वह उन भारी-भरकम स्वास्थ्य खर्चों से कहीं कम है जो निष्क्रियता और बीमारियों के कारण उठाने पड़ते हैं। जो वरिष्ठजन रोजाना चल सकते हैं, उनमें जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों का खतरा कम होता है, वे दूसरों पर कम निर्भर रहते हैं और मानसिक व सामाजिक रूप से अधिक सक्रिय बने रहते हैं। इसका लाभ न केवल व्यक्ति को बल्कि परिवार, समाज और राष्ट्र—सभी को मिलता है।
अच्छे फुटपाथ केवल शहरी डिजाइन का हिस्सा नहीं हैं। वे एक ऐसे समाज का प्रतीक हैं, जो अपने बुजुर्गों को महत्व देता है, उनकी ज़रूरतों का सम्मान करता है और उनके जीवन को गरिमामय बनाता है। शुरुआत कीजिए, बस एक कदम से।
लेखक

लेखक नेवर से रिटायर्ड मिशन के प्रणेता है। इस ध्येय के बाबत वो इस वेबसाइट का भी संचालन करते है और उनके फेसबुक ग्रुप नेवर से रिटायर्ड फोरम के आज कई हज़ार सदस्य बन चुके है।